बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक अलग रह रही पत्नी और उसके दो बच्चों को मृत सरकारी कर्मचारी की पारिवारिक पेंशन और अन्य अंतिम लाभ मिलने का हक है, भले ही मृत्यु से पहले तलाक की प्रक्रिया शुरू की गई थी और पत्नी पर व्यभिचार के आरोप लगाए गए थे जो सिद्ध नहीं हुए। न्यायमूर्ति मनीष पिताले और वाई.जी. खोबरागड़े की खंडपीठ ने एक अलग रह रही पत्नी और उसके दो बच्चों की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया।
दरअसल, याचिकाकर्ता महिला और उसके पति का विवाह 1997 में हुआ था। महिला का पति जो एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर थे, उनकी नियुक्ति 2009 में हुई थी। हालांकि, दंपति के रिश्ते में खटास आ गई और 2011 में पति ने पत्नी के खिलाफ तलाक की कार्यवाही शुरू की थी। ये मामला दंपति के बीच मतभेद के कारण अदालत में लंबित था।
मृतक ने बदला लाभार्थियों का नाम
वैवाहिक विवाद के बीच पति ने एकतरफा रूप से पारिवारिक पेंशन के लाभार्थियों के नॉमिनी का विवरण बदल दिया था। मृतक ने अपनी पत्नी के जगह पर अपने भाई को नॉमिनी बना दिया था। हालांकि, प्रोफेसर ने अपने दो बेटों का नाम नॉमिनी के रूप में बरकरार रखा था। वहीं, साल 2018 में पति की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनकी अलग रह रही पत्नी और बच्चों ने पेंशन संबंधी दावे के लिए आवेदन किया। पति की मां और भाई ने इस दावे का विरोध किया और नॉमिनी फॉर्म का हवाला दिया, जिसमें मृत्यु से लगभग चार साल पहले पत्नी का नाम हटाकर भाई का नाम जोड़ा गया था। मृतक की मां और भाई ने तलाक की कार्यवाही शुरू होने और पत्नी पर व्यभिचार के आरोपों का हवाला दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता पत्नी और बच्चों की ओर से पेश वकील यशोदीप देशमुख ने महाराष्ट्र सिविल सर्विसेज (पेंशन) नियम (MCSR) के नियम 115 और इसके उप-नियम (1) के प्रावधान (i) का हवाला दिया। इस नियम के अनुसार, यदि सरकारी कर्मचारी का परिवार है तो नामांकन किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में नहीं किया जा सकता, बल्कि ये केवल परिवार के सदस्यों के लिए होना चाहिए।
साबित नहीं हुए थे आरोप
बेंच ने MCSR के नियम 116 के तहत 'परिवार' की परिभाषा का अध्ययन किया और पाया कि इसमें केवल पत्नी और बच्चे ही शामिल हैं। कोर्ट ने ये भी देखा कि नियमों के अनुसार, याचिकाकर्ता पत्नी को लाभ से वंचित तभी किया जा सकता है, यदि उसका पति से व्यभिचार के आधार पर कानूनी रूप से तलाक हो चुका हो या उसे व्यभिचार का दोषी ठहराया गया हो। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में, पत्नी के खिलाफ केवल वैवाहिक कार्यवाही में व्यभिचार का आरोप लगाया गया था, लेकिन कार्यवाही के अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले ही कर्मचारी (पति) की मृत्यु हो गई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 'पत्नी के खिलाफ व्यभिचार के आरोप को लेकर किसी सक्षम न्यायिक प्राधिकरण का कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं है।'
8 हफ्तों में एरियर जारी करने का निर्देश
बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह आठ हफ्ते के अंदर बकाया (एरियर) राशि का भुगतान करे और यदि इसमें देरी होती है तो 9% वार्षिक ब्याज लागू होगा। साथ ही मासिक पारिवारिक पेंशन को तत्काल शुरू करने का आदेश दिया गया।
सन्दर्भ स्रोत : आज तक
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