संगीता रैकवार: कभी खाने के थे लाले,

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संगीता रैकवार: कभी खाने के थे लाले,
अब खेती से बदली किस्मत

छाया :  दैनिक भास्कर 

• दो कमरों में तीन किस्म  के मशरूम उगाकर कर रही 10 हजार महीने की कमाई

कुछ दिनों पहले तक पाई-पाई के लिए मोहताज जबलपुर जिले के कुसली गांव की 31 साल की संगीता रैकवार अब आत्मनिर्भर बन कई महिलाओं की प्रेरणा भी बन चुकी है। संगीता ने चार साल पहले दो कमरों में तीन किस्म के मशरूम की खेती करना शुरू किया था। धीरे-धीरे पैदावार बढ़ती गई और आय में बढ़ोतरी होने लगी। संगीता अब हर महीने लगभग 10 हजार रुपए कमा रही हैं। गांव के लोग इन्हें मशरूम वाली दीदी के नाम से जानते हैं।

संगीता बताती हैं चार साल पहले हालात इतने खराब थे कि हमें दो वक्त की रोटी के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। पति शैलेंद्र रैकवार को यदि काम मिल गया, तो ठीक नहीं तो एक वक्त का चूल्हा जलाना भी मुश्किल होता था। बच्चों के स्कूल की फीस भी जमा नहीं हो पा रही थी। एक दिन अचानक आजीविका मिशन के तहत कुछ महिलाओं से मुलाकात हुई। इसके बाद कुछ महिलाओं ने मुझे समूह में जोड़ा। मशरूम की खेती के बारे में बताया। साथी महिलाओं ने मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी। इस दौरान मुझे ये भी पता चला कि किस फसल को कैसे लगाना होता है। कितने दिन में इसको तोड़ा जाता है। कुछ ही महीने में मशरूम की खेती करना सीख गई। आज घर के एक कमरे में मशरूम की फसल लगी है। वहीं, एक कमरा किराए से भी ले रखा है। 

संगीता और उनके पति झूला और रैक पद्धति से मशरूम की खेती कर रहे हैं। पॉली बैग से 15 दिनों में ही मशरूम आना शुरू हो जाते हैं। एक पॉली बैग से तीन बार मशरूम निकलते हैं। संगीता को मशरूम की खेती करते देख अब गांव की महिलाएं भी उनके साथ जुड़ रही हैं। गांव की महिलाओं को संगीता मुफ्त में ट्रेनिंग दे रही हैं। इसके अलावा उन्हें यह भी बता रही हैं कि बीज कहां से लाना है और फसल तैयार हो जाने के बाद किसे और कितने में बेचना है।

संगीता बताती हैं मशरूम की खेती में मेहनत भी बहुत लगती है। जिस कमरे में मशरूम लगाते हैं, उसमें देखना होता है कि कहीं कीड़े, मक्खी, छिपकली या फिर चूहे तो नहीं घुस आए हैं। क्योंकि अगर एक बैग की फसल भी खराब हुई तो धीरे-धीरे इसका असर सभी में पड़ने लगता है। इसके अलावा कमरे का तापमान भी मेंटेन करना होता है। 25 डिग्री से ज्यादा तापमान पर मशरूम की फसल सूखने लगती है, इसलिए तापमान मेंटेन रखना बड़ी चुनौती होती है।

मशरूम की खेती दो प्रकार से की जाती है। एक मिक्स पद्धति होती है और दूसरी फोर लेयर पद्धति। दोनों ही प्रकार की खेती में यह जरूर देखना होता है कि जिस जगह मशरूम रखा होता है, वहां का तापमान 25 डिग्री से ऊपर नहीं रहना चाहिए। क्योंकि अगर मौसम गर्म होगा, तो मशरूम टूटकर गिर जाएगा और खराब हो जाएगा। हमने मशरूम के लिए कमरों में कूलर लगाए हैं। इसके अलावा कपड़ों की बोरी भी दीवारों में टांगी हैं, जिसे समय-समय पर पानी से भिगोते हैं। 

मशरूम की खेती के लिए (स्पॉन्ड) बीज और भूसा की जरूरत होती है। सबसे पहले भूसा को पानी से भिगोया जाता है। इस भूसे को 15 घंटे सुखाने के बाद स्पॉन्ड में मिलाया जाता है और छेद वाली पॉलीथिन में भरकर छोड़ दिया जाता है। 15 दिन बाद मशरूम की पहली फसल आती है। एक पॉलिथीन बैग करीब एक से डेढ़ किलो का होता है। बीज और भूसा की लागत कुल मिलाकर 30 से 35 रुपए तक आती है, लेकिन जब इसमें फसल आती है तो इसका मुनाफा 150 रुपए प्रतिकिलो तक हो जाता है।

संदर्भ स्रोत : दैनिक भास्कर 

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