मलिन बस्ती के बच्चों को पढ़ाने लिया वीआरएस,  आज दो सौ से

blog-img

मलिन बस्ती के बच्चों को पढ़ाने लिया वीआरएस,  आज दो सौ से
अधिक बच्चों को पढ़ा रहीं ग्वालियर की संगीता

छाया: संगीता मल्होत्रा के फेसबुक अकाउंट से 

ग्वालियर। कहते हैं बच्चे देश का भविष्य हैं, लेकिन देश की मलिन बस्तियों में आज भी ऐसे कई बच्चे हैं, जो शिक्षा से महरूम हैं। ऐसे ही बच्चों के लिए ग्वालियर की शिक्षिका संगीता मल्होत्रा ने सुंदर पहल करते हुए लोगों के सामने एक आदर्श मिसाल पेश की है। वे गरीब व जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित कर उन्हें समाज का अहम हिस्सा बनाने हेतु प्रयासरत हैं। संगीता  ने स्कूल में पढ़ाने के दौरान इन बच्चों को स्लम एरिया में पढ़ाने की शुरुआत की, लेकिन जब पूरा समय नहीं दे पाईं तो उन्होंने वीआरएस ले लिया। आज वह अपना पूरा समय इन बच्चों को दे रही हैं।

संगीता ने बताया कि मैंने सरकारी स्कूल में वर्ष 1994 से कार्य करना शुरू किया, लेकिन अपने सेवाकाल के दौरान कई बार मैंने महसूस किया कि गरीब बस्तियों से आने वाले बच्चों के साथ शिक्षकों का व्यवहार ठीक नहीं रहता था। यह देख मन बहुत दुखी रहता। तब मैंने 2018 से ऐसे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। तब भी कुछ लोगों को मेरा यह काम रास नहीं आया तो मैंने 2021 में वीआरएस ले लिया। उस समय मैं गर्ल्स स्कूल थाटीपुर में सेवाए दे रही थी। आज वे लगभग 200 बच्चों को पढ़ा रही हैं और 12 बेटियों की पढ़ाई एवं अन्य खर्च उठा रही हैं।

अकेले की शुरुआत, कारवां बढ़ता गया

बच्चों को पढ़ाने का यह सफर संगीता ने अकेले शुरू किया था, लेकिन आज उनके पास 40 युवाओं की टीम है। इनमें से 30 लोग ऐसे हैं जो अपने काम से समय निकालकर बच्चों को पढ़ाने पहुंचते हैं। संगीता बताती हैं मैंने  गरीब बस्तियों के जिन बच्चों को पढ़ाया था, उनमे से कुछ बच्चे अब पढ़ा भी रहे हैं। चार-पांच साल में वह काबिल हो गए हैं। यह देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। मेरी टीम अभी ग्वालियर व्यापार मेला, सात फुटा रोड पर बच्चों को पढ़ा रही है। संगीता जल्द ही मैं एक प्रोजेक्ट शुरू करने जा रही हैं. जिसमें महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही  वहां के बच्चों को शिक्षित भी करेंगी। जब उन्होंने कक्षाएं शुरू कीं तो वहां बड़ी उम्र के बच्चे भी अपना नाम नहीं लिख पाते थे। उन बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए उनकी टीम को उनके माता-पिता को बहुत समझाना पड़ा था। लेकिन अब वे लिख-पढ़ पा रहे हैं।

संगीता कहती हैं कि ऐसी बस्तियों में जाकर पढ़ाने वाले लोग तो बहुत हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए कि बच्चा भले ही स्कूल में न पढ़े, लेकिन उनके लिए परीक्षा की व्यवस्था के जाए। इससे उसे मालूम चल सकेगा कि वह आगे बढ़ रहा है। उसकी दिलचस्पी भी बढ़ेगी और आगे चलकर उसे रोजगार मिल सकेगा।

संदर्भ स्रोत: पत्रिका 

सम्पादन: मीडियाटिक डेस्क 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



समाज सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए
न्यूज़

समाज सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए , समीक्षा मिश्रा को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से सम्मान

उनकी एक विशेष उपलब्धि यह रही कि एक ज़रूरतमंद छात्र, जिसे उन्होंने पढ़ाई और आर्थिक सहायता प्रदान की, आज इंजीनियरिंग के दू...

पहली बार एनडीए से पास हुईं 17 महिला
न्यूज़

पहली बार एनडीए से पास हुईं 17 महिला , कैडेट्स, देश की तीनों सेनाओं में होंगी शामिल

भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में, पुणे में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) से 17 महिला कैडेटों का पहला बैच स...

इंदौर की पैरा एथलीट पूजा गर्ग का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज
न्यूज़

इंदौर की पैरा एथलीट पूजा गर्ग का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज

पूजा ने कैंसर को हराकर नाथुला पास फतह किया, दिल्ली की सीएम ने किया सम्मान

भोपाल की प्राची का पैरा वर्ल्डकप में दूसरा ब्रॉन्ज
न्यूज़

भोपाल की प्राची का पैरा वर्ल्डकप में दूसरा ब्रॉन्ज

उनकी एथलेटिक यात्रा 2007 में तैराकी के साथ शुरू हुई थी। 2020 में मध्य प्रदेश सरकार से उन्हें विक्रम पुरस्कार और 2023 में...

राधिका ओझा ट्रेलब्लेजर पुरस्कार-2025 से सम्मानित
न्यूज़

राधिका ओझा ट्रेलब्लेजर पुरस्कार-2025 से सम्मानित

दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए करती हैं काम

सतना की प्रज्ञा बघेल बनी सुप्रीम कोर्ट की सचिव
न्यूज़

सतना की प्रज्ञा बघेल बनी सुप्रीम कोर्ट की सचिव

75 वर्ष के इतिहास में सचिव का चुनाव जीतने वाली चौथी महिला