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महत्वपूर्ण अदालती फैसले
वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं, यह मुद्दा समय–समय पर बहस का विषय रहा है। एक वर्ग जहां इसे नैतिक और कानूनी रूप से सही मानता है, वहीं दूसरा एक वर्ग ऐसा भी है, जो इसे स्त्री गरिमा के विरुद्ध बताता है। किसी भी तरह के यौन संबंधों में दोनों पक्षों की सहमति का होना बेहद ज़रूरी होता है बिना उसके वह कार्य बलात्कार की श्रेणी में ही आता है, लेकिन भारत अभी भी उन गिने-चुने देशों में से एक है, जहां वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं, बल्कि घरेलू हिंसा और यौन शोषण का एक रूप माना जाता है। वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि वैवाहिक संबंध के भीतर हुए बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता, लेकिन हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) को दंडनीय मानते हुए अपने एतिहासिक फैसले में कहा है कि शादी क्रूरता का लाइसेंस नहीं है।
उल्लेखनीय है कि एक व्यक्ति द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोपों को हटाने की मांग की गई थी। व्यक्ति पर रेप का आरोप उसकी पत्नी ने ही लगाया था।
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को स्वीकार नहीं किया और कहा कि शादी किसी भी पुरुष को विशेषाधिकार नहीं देती है कि वह अपनी पत्नी के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करे। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार दंडनीय है तो वह दंडनीय ही रहना चाहिए। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपवाद की श्रेणी में रखना प्रतिगामी है और यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत के विपरीत है।
बता दें कि पत्नी की सहमति के बिना उससे जबरन यौन संबंध बनाने को मैरिटल रेप कहा जाता है। मैरिटल रेप को पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न माना जाता है, लेकिन देश में इसे आपराधिक कृत्य नहीं माना जाता है। इसे आईपीसी की धारा 375 के तहत अपवाद माना गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने ताजा फैसले में आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता पर कोई निर्देश नहीं दिया है।
संदर्भ स्रोत- ज़ी न्यूज इंडिया डॉट कॉम एवं फेमिनिज़म इन इंडिया डॉट कॉम
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