छाया : पत्रिका डॉट कॉम
विशिष्ट महिला
राजनीतिक जीवन में मूल्यों और सिद्धांतों के लिए जूझने वाली विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर,1919 को सागर में हुआ और नाम रखा गया लेखा दिव्येश्वरी। बचपन में ही माँ का स्वर्गवास हो जाने और पिता द्वारा दूसरी शादी कर लेने के कारण उनकी परवरिश नाना-नानी ने की। नाना राणा खड्ग शमशेर जंग बहादुर और नानी धनकुमारी देवी नेपाल से निर्वासित होकर सागर में बस गए थे। विजयाराजे की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इसके बाद उन्हें एनी बेसेंट थियोसॉफिकल स्कूल, वाराणसी में पढऩे के लिए भेजा गया। उच्च शिक्षा उन्होंने एलिजाबेथ थोबर्न कॉलेज, लखनऊ से ग्रहण की।
21 फरवरी, 1941 को वे ग्वालियर के महाराज जीवाजीराव सिंधिया के साथ परिणय सूत्र में बंध गईं, जिसके पशचात् उनका नाम विजयाराजे सिंधिया रखा गया। उन्होंने एक पुत्र और चार पुत्रियों को जन्म दिया। जिनके नाम क्रमश: माधवराव, पद्मा राजे , ऊषा राजे , वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे हैं। इनमें बड़ी बेटी पद्मा राजे का निधन मात्र 22 वर्ष की आयु में 25 मार्च, 1966 को हो गया, जबकि माधवराव सितम्बर 2001 में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में काल का ग्रास बन गए। वर्तमान में वसुन्धरा, यशोधरा और स्व. माधवराव के पुत्र ज्योतिरादित्य भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं।
इन्हें भी पढ़िये –
गुल बर्धन - जिन्होंने बैले को समर्पित कर दिया जीवन
ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहते हुए सन् 1941 में ही विजयाराजे स्वदेशी अवधारणा से इतनी प्रभावित हुईं, कि उन्होंने सूती साड़ी पहनना शुरू कर दिया। सन् 1960 में जीवाजीराव के निधन के बाद उन्हें राजमाता का दर्जा मिला। सन् 1957 में श्रीमती सिंधिया ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और उसी साल लोकसभा के लिए चुन ली गईं। इसके बाद क्रमश: सन् 1962, सन् 1989, सन् 1991, सन् 1996 और सन् 1998 में भी वे लोकसभा के लिए चुनी गईं। इस बीच सन् 1967-1971 तक मध्यप्रदेश विधानसभा में सदस्य रहीं। यही वह कालखण्ड था जब मध्यप्रदेश की राजनीति और विजयाराजे के राजनीतिक जीवन में नया मोड़ आया।
दरअसल 25 मार्च, 1966 को बस्तर के महाराजा प्रवीर चंद की पुलिस की गोली से मौत से विचलित होकरविजया राजे ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र को खुली चुनौती दी और उन्हें अपदस्थ करने का संकल्प लेकर कांग्रेस से अलग हो गईं। वे भारतीय जनसंघ और कांग्रेस के दलबदलू विधायकों के सहयोग से प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रहीं। प्रथम संविद् सरकार की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाने के बावजूद उन्होंने मुख्यमंत्री पद लेने से इंकार कर दिया और सदन की नेता बनीं। इस तरह उन्होंने अपना संकल्प पूरा किया।
इन्हें भी पढ़िये –
अपनी अलग पहचान बनाने वाली उषा मंगेशकर
सन् 1978-1989 तक दो बार वे राज्यसभा सदस्य रहीं। सन् 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें तिहाड़ जेल में रहना पड़ा। राजनीतिक जीवन में हमेशा सजग रहने वाली विजयाराजे सिंधिया के इसी समय बेटे माधवराव से राजनीतिक मतभेद हुए, इस कारण जेल से रिहा होने के बाद वे अपनी बेटी ऊषाराजे के पास नेपाल चली गईं थी।
सन् 1980 में वे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनीं। सन् 1990-91 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में परामर्श दात्री समिति, सन् 1996-97 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण तथा वन संबंधी समिति जैसे महत्वपूर्ण समितियों की सदस्य रहीं। लम्बी राजनीतिक यात्रा के बाद उन्होंने सन् 1998 में अस्वस्थता के कारण सन्यास ले लिया। जनवरी 2001 में तेज सरदर्द और बुखार के चलते अत्यंत नाजुक अवस्था में उन्हें अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान ही अचानक 25 जनवरी, 2001 को वह इस दुनिया से विदा हो गईं। श्रीमती सिंधिया अपने जीवन में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकलापों में भी रुचि लेती रहीं। वे शिशु मंदिर और सिंधिया कन्या विद्यालय,ग्वालियर की संस्थापक अध्यक्ष रहीं। खेल, संगीत और कला में भी उनकी गहरी रुचि थी। अपने व्यस्त राजनीतिक जीवन में भी वह लिखती – पढ़ती रहीं। उनकी दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं।
इन्हें भी पढ़िये –
मासूम गुड्डी से मुखर सांसद बनने का सफ़र कैसे तय किया जया बच्चन ने!
उपलब्धियां
- सदस्य – इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली
- सदस्य – कॅन्स्टिीट्यूशनल क्लब, नई दिल्ली
- सदस्य- वेलिंगटन स्पोर्ट्स क्लब, नई दिल्ली
- सदस्य- रॉयल वेस्टर्न टर्फ क्लब, मुंबई
- सदस्य- क्रिकेट क्लब ऑफ इण्डिया, मुंबई
- सदस्य- नेशनल स्पोर्ट्स क्लब और जिमखाना क्लब, मुंबई
- सदस्य- सन् 1990-91 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में परामर्श दात्री समिति
- सन् 1996-97 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण तथा वन संबंधी समिति
- पुस्तकें प्रकाशित- द लास्ट महारानी ऑफ ग्वालियर (अंग्रेजी), लोकपथ से राजपथ तक (हिन्दी)
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *