माण्डू की आदिवासी युवती ‘वोग’ के डिजिटल संस्करण में

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माण्डू की आदिवासी युवती ‘वोग’ के डिजिटल संस्करण में

मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित पर्यटन स्थल माण्डू रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर की प्रेम कथा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। अब यह कस्बा यहां की रहने वाली 25 वर्षीय सीता वसुनिया के कारण इन दिनों चर्चा में है। दरअसल, सीता इन दिनों अंतरराष्ट्रीय फैशन मैगजीन वोग के डिजिटल संस्करण में छाई हुई हैं। उनका फोटो ताजा संस्करण में सबसे पहले नंबर पर प्रदर्शित हुआ है। सीता ने जो मुकाम हासिल किया, उस पर बड़ी-बड़ी फिल्म अभिनेत्रियां भी गर्व करती हैं। वह धरा स्वसहायता समूह की सदस्य है।

सीता और उसके कुछ साथी महेश्वरी व चंदेरी सहित अन्य प्रिंट की साड़ियां व ड्रेस मटेरियल तैयार करती हैं। ये महिलाएं सूती कपड़े की खरीदी करके उनसे साड़ियां तैयार करती हैं। सबसे अहम बात यह है कि साड़ियों की छपाई-रंगाई से लेकर मार्केटिंग के साथ खुद मॉडलिंग भी करती हैं। ऑनलाइन डिजिटल वर्ल्ड में अपनी रचनात्मक डिजाइन वाली साड़ियां बेचना भी इनका जिम्मा है। अपनी इस उपलब्धि से और आगे जाने की इस समूह की तैयारी है। सीता वसुनिया कहती हैं, फरवरी में काम शुरू किया था। कुछ ही दिनों में यह मुकाम हासिल कर लिया। यह तो शुरुआत है।

सीता की सफलता को रेखांकित करते हुए धार की अपर कलेक्टर डॉ. सलोनी सिडाना ने कहा कि जो फोटो वोग में लिया है, वह किसी भव्य स्थान का नहीं, बल्कि मांडू के जहाज महल में साधारण सी पृष्ठभूमि पर लिया गया है। वे बताती हैं कि कपड़ों पर छपाई की कला बाग प्रिंट को लेकर तीन स्व सहायता समूह धरा, सूरज और चांदनी सक्रिय हैं। हम उन्हें स्थानीय स्तर पर ऑर्गेनिक कॉटन का कपड़ा उपलब्ध करवाते हैं। उसके बाद फ़र्रुखाबाद से बनकर आने वाले ब्लाक से ये खुद प्रिंट करती हैं यानी ठप्पा लगाती हैं और उसे आकर्षक डिजाइन में तैयार करती हैं। उसके बाद कपड़े की रंगाई आदि संबंधी प्रोसेस भी खुद करती हैं। हमने इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस तरह से तैयार किया है कि वे खुद बतौर मॉडल भी काम करें। इसी कारण सीता ने जब अपना फ़ोटो शेयर किया तो वह वोग जैसी अंतरराष्ट्रीय फ़ैशन पत्रिका के डिजिटल संस्करण पर पहुंच गया।

दरअसल, धार जिला प्रशासन महिलाओं को रोज़गार से जोड़ने के उद्यम कर रहा है। धार डेवलपमेंट एजेंसी के माध्यम से महिलाओं के स्व सहायता समूह बनाकर उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन्हीं महिलाओं ने खुद धरा छापा कला का ईजाद किया। ये समूह साड़ी, सलवार सूट, दुपट्टे, कुर्ते, जैकेट जैसे कई तरह के कपड़ों पर छपाई कर इन्हें बाज़ार के लिये तैयार करते हैं। सीता ने ‘आज तक’ से ख़ास बातचीत में बताया, कि ‘इस तरह छपाई बहुत मेहनत का काम है। इसमें ब्लॉक से प्रिंट करते हैं, फिर धूप में सुखाते है, इसके बाद प्रेस की जाती है।

जिला प्रशासन भी सीता की उपलब्धि से बहुत खुश है। उसका मानना है कि इससे और महिलाओं को भी स्वरोजगार की प्रेरणा मिलेगी। अपनी इस उपलब्धि से सीता बहुत खुश हैं. इसी क्षेत्र में बहुत कुछ करना चाहती हैं. साथ ही वह चाहती हैं कि सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए अधिक से अधिक महिलाएं स्वावलंबन का रास्ता अपनाएं जिससे उनकी आर्थिक हालत में सुधार हो सके। डॉ. सिडाना का कहना है कि जिला प्रशासन अब सीता जैसी महिलाओं को अधिक से अधिक रोजगार दिलाने की कोशिश करेगा।

उन्होंने बताया कि चूँकि ये साड़ियां इन्हीं महिलाओं ने बनाई हैं, तो इनके प्रमोशन के लिए कोई और इन्हें पहनकर फोटो क्यों खिंचवाए। इन महिलाओं का खुद ही मॉडलिंग करना शायद बहुत अच्छा प्रयास होगा। हालांकि इसमें जोखिम भी बहुत था, क्योंकि आमतौर पर पेशेवर फ़ैशन मॉडल चेहरों की बाज़ार में कीमत ज़्यादा होती है। लेकिन हमने दिल्ली से एक फैशन फ़ोटोग्राफ़र को आमंत्रित किया और यह सुनिश्चित किया कि फ़ोटोशूट में कोई फ़िल्टर इस्तेमाल नहीं किया जाए, सब कुछ एकदम नेचुरल हो, कोई बहुत ज़्यादा साज- शृंगार न हो। इसी का नतीजा है कि ये तस्वीर एक उच्च प्रतिष्ठित पत्रिका के डिजिटल संस्करण में जगह बनाने में कामयाब हुई।

संदर्भ स्रोत : दैनिक जागरण तथा ‘आज तक’

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