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वित्त एवं आर्थिक क्षेत्र
महिलाओं के लिए बैंकिंग अमूमन एक त्रासदायक अनुभव होता है। अपनी बारी की प्रतीक्षा करना और कागज़ी खानापूरी करना, उबाऊ और काफी समय लेने वाला काम है। इसके लिए अलग से वक़्त निकालना भी मुश्किल होता है। इसी तथ्य को ध्यान में वर्ष 2016 के मार्च-अप्रैल में राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए एक अनूठी योजना शुरू की गई, जिससे अल्प शिक्षित और बेरोज़गार महिलाओं को जोड़ा गया। इन्हें नाम दिया गया ‘बैंक सखी’। ये ‘सखियां’ गाँव में घर-घर जाकर बैंक की लेन-देन वाले कामों में मदद करती हैं। उनके लिए शहर जाकर बैंक का काम करना काफी कठिनाई वाला हुआ करता था जिसे बैंक सखियों ने घर आकर आसान बना दिया।
राजगढ़ में नर्मदा-झाबुआ सहकारी बैंक द्वारा शुरू हुई इस योजना के साथ शुरुआत में मात्र 12 महिलाएं जुड़ीं। उन्हें राजगढ़ जिले के 12 केंद्रों पर लैपटॉप और बैंकिंग के काम का प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने बैंक के विशेष सॉफ्टवेयर को भी चलाना सीखा। इसके तीन माह बाद अलीराजपुर और बड़वानी की टीमों ने आकर इस योजना को देखा और अपने जिलों में इसकी शुरुआत की। बड़वानी की मात्र दो महिलाएं इस योजना से जुड़ी और बैंक सखी का काम सम्भाला। उस समय उन महिलाओं को मात्र कमीशन दिया जाता था। अगले तीन महीनों में बैंक सखियों की संख्या 34 हो गयी। ये बैंक सखियाँ घर-घर जाकर स्वयं सहायता समूह के वित्तीय लेन-देन, मनरेगा से भुगतान, पेंशन, बीमा योजना, छात्रवृत्ति, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि का काम करवाने लगीं। इनके सहयोग से तीन माह के भीतर 1 करोड़ 42 लाख का लेन देन दर्ज किया गया जो अपने आप में एक उदाहरण है। आज इसे बी.सी. सखी योजना कहा जाता है, जिसका आशय है बैंक करसपोंडेंट सखी योजना। उल्लेखनीय है कि यह बैंक सखी बनने के लिए किसी महिला के लिए अल्प शिक्षित ही होना काफी नहीं है। चयन के बाद भी इसे अपना रोज़गार बनाने के लिए कम से कम 1 लाख रूपये की जरुरत होती है।दरअसल, काम को आगे बढ़ाने के लिए लैपटॉप, कियोस्क एवं इंटरनेट कनेक्शन एवं प्रशिक्षण आदि पर लगभग लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। यह काम करने वाली सखियों पर निर्भर करता है कि वे एक साथ कितने बैंकों का काम कर सकती हैं।
शुरुआत में बैंक सखियों को केवल कमीशन दिया जाता था। बाद में बैंक ने उन्हें प्रोत्साहन राशि भी देना शुरू कर दिया। इनकी मेहनत का सम्मान करते हुए राज्य आजीविका मिशन ने उन्हें अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया। सफलता को देखते हुए अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक भी इस योजना के साथ जुड़ गए – जैसे बैंक ऑफ़ इंडिया, भारतीय स्टेट बैंक एवं बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र। वर्तमान में इन बैंक सखियों को लगभग 10 हज़ार वेतन के रूप में प्राप्त होता है। इस योजना के साथ जुड़ने वाली हर बैंक सखी अपने परिश्रम से अपनी पहचान बना रही हैं। इस योजना की ख्याति जल्द ही दूर-दूर तक पहुँच गई। परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार ने भी इसमें रूचि ली। आज देश के कई राज्यों में यह योजना सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है। कोरोना काल में इनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
संपादन: मीडियाटिक डेस्क
स्रोत: विभिन्न समाचार वेबसाइट्स
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