मध्यप्रदेश की कुछ चर्चित महिला राजनेता

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मध्यप्रदेश की कुछ चर्चित महिला राजनेता

 

राजनीति-विमर्श

• राकेश दीक्षित

महिला राजनेताओं को मोटे रूप में तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है। पहली श्रेणी में वे नेत्रियाँ थीं जो राजघरानों से ताल्लुक रखती थीं। दूसरी में उन महिलाओं को शुमार किया जा सकता है जो अपने पति या पिता की राजनीतिक विरासत की बदौलत सांसद या विधायक बनीं। तीसरी श्रेणी उन महिलाओं की है जो संघर्ष कर अपने बलबूते आगे आईं।

राजघरानों से उठने वाली महिलाओं में सबसे पहला नाम विजयाराजे सिंधिया का है। खैरागढ़ की रानी पद्मावती देवी, घंसौर की उर्मिला सिंह ,भोपाल की मैमूना सुल्तान और सारंगढ़ के नरेश चंद्र की बेटियां कमला देवी और पुष्पा देवी के साथ सरगुजा की रानी देवेंद्र कुमारी जैसी नेत्रियां राजघराने से जुडी होने की वजह से आसानी से चुनाव जीतकर राजनीति में नाम कमा सकीं। परिवार की राजनीतिक विरासत का जिन्हे फायदा मिला उन नेत्रियों में जयश्री बनर्जी, हिना कांवरे ,विद्यावती चतुर्वेदी और मालिनी गौड़ शुमार हैं। तीसरी श्रेणी उन जुझारू नेताओं की है जो अपने बलबूते पर ऊपर आईं। इनमें सबसे सम्मानजनक स्थान जमुना देवी का है। सुमित्रा महाजन, उमा भारती ,कल्पना परुलेकर, सहोद्रा राय जैसी राजनेत्रियों ने भी संघर्षशीलता के बूते अपना नाम रोशन किया।

 यहाँ हम मध्य प्रदेश के गठन के बाद से लोकसभा और विधानसभा में मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली चुनिंदा महिलाओं का संक्षिप्त  परिचय दे रहे हैं। यह सूची पूर्ण नहीं है, लेकिन सूची पिछले 64 वर्षों में महिलाओं की राजनीतिक यात्रा का पर्याप्त चित्र प्रस्तुत करती है।

सहोद्रा राय: सहोद्रा राय 1957 और 1962 में दमोह और 1971 तथा 1980 में सागर से कांग्रेस की सांसद रहीं। गोवा मुक्ति संग्राम में सहोद्रा राय ने तीन गोलियां खाने के बाद भी हाथ में थामे तिरंगे को ज़मीन पर नहीं गिरने दिया था। आंदोलन में साथ काम कर रहे स्वयंसेवकों ने उन्हें राहत शिविर में पहुँचाया। वहाँ से उन्हें अस्पताल ले जाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सहोद्रा को देखने अस्पताल गए थे। सहोद्रा राय दमोह जिले के पथरिया तहसील के बोतराई गांव की रहने वाली थीं। पति मर्दन सिंह के निधन के बाद वे अपनी बड़ी बहन के साथ सागर जिले ने नरयावली विधानसभा के कर्रापुर में रहने चली गईं। वे बड़ी दबंग महिला थीं और साथ में हमेशा लाठी लेकर चलती थीं। पूर्व प्रधानमंत्री गोवा मुक्ति संग्राम के समय से ही सहोद्रा से बड़ी प्रभावित थीं और उन्हें अपनी बहन मानती थीं। वर्ष 1981 में उनका निधन हो गया। 30 अप्रैल  2018 को सहोद्रा राय का सौवां जन्मदिन शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया था।

विजयाराजे सिंधिया: विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919  सागर जिले में राणा परिवार में ठाकुर महेंद्र सिंह एवं चूड़ा देवेश्वरी देवी के घर हुआ था। ये अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थीं। इनके पिता जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे। इनके बचपन का नाम लेखा देवेश्वरी देवी था।

विजया राजे सिंधिया एक प्रमुख भारतीय राजशाही व्यक्तित्व के साथ-साथ एक राजनीतिक व्यक्तित्व भी थीं। देश में राजशाही समाप्त होने पर वे राजनीति में उतर गई । वे पहली बार 1957 में गुना से लोकसभा के लिए चुनी गईं। लेकिन कांग्रेस में 10 साल बिताने के बाद पार्टी से उनका मोहभंग हो गया। इसका प्रमुख कारण था मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्रा से मतभेद। इसकी परिणीति मिश्रा सरकार के पतन में हुई।

श्रीमती सिंधिया 1967 में जनसंघ में शामिल हुईं। उनकी बदौलत ही ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ काफी मजबूत हुआ। वर्ष 1971 में पूरे देश में जबरदस्त इंदिरा लहर होने के बावजूद जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत हासिल की। विजयाराजे सिंधिया भिंड से, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया गुना से और अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से सांसद बने। वे भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्य थीं। 1984 में वे रायबरेली से इंदिरा गाँधी के खिलाफ चुनाव में पराजित हुईं। वर्ष 1989 में उन्होंने आखिरी बार गुना सीट से विजय प्राप्त की। 25 जनवरी 2001 को उनका देहावसान हो गया।

विद्यावती चतुर्वेदी: विद्यावती जी नवगठित मध्यप्रदेश की पहली विधानसभा के लिए छतरपुर जिले की लौंड़ी सीट से विधायक चुनी गईं। उनके पति बाबूराम चतुर्वेदी बुंदेलखंड के जाने माने कॉंग्रेस नेता थे। वर्ष 1957 से 1962 तक विधानसभा सदस्य रहने के चार साल बाद उन्हें राज्यसभा जाने का मौका मिला। वे 1978 तक राज्यसभा सदस्य रहीं। वर्ष 1980 से 1989 तक दो कार्यकाल के लिए वे खजुराहो सीट से लोकसभा सदस्य रहीं। इसके बाद परिवार की राजनीतिक विरासत उनके पुत्र सत्यव्रत चतुर्वेदी ने सम्हाल ली, जो माँ की ही तरह विधानसभा ,राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रहे। 6 दिसंबर 1926 को जन्मीं विद्यावती जी का निधन वर्ष 2009 में हुआ।

विमला शर्मा: पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय शंकरदयाल शर्मा की पत्नी विमला शर्मा 1985 में उदयपुरा सीट से कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था। इसी सीट से 1962 में डॉक्टर शर्मा भी जीते थे। 1927 में जन्मी विमला शर्मा का अगस्त 2020 में कोविड महामारी से निधन हो गया। समाज सुधार और महिला अधिकारिता के क्षेत्र में वे सक्रिय रहीं। वे मध्यप्रदेश समाजसेवा परिषद की अध्यक्ष भी रहीं।

विमला वर्मा : बुआजी के नाम वे विख्यात विमला वर्मा का जन्म नागपुर में 1 जुलाई 1929 को हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया था। 1963 से वे कांग्रेस से जुड़ गईं थीं। 1967 से 1990 तक लगातार विधायक रहीं। बाद में 1991 और 1998 के लोकसभा चुनाव में जीतकर सिवनी सीट का प्रतिनिधित्व किया। पहली बार 1969 में उन्हें श्यामाचरण शुक्ल के मंत्रिमंडल में सिंचाई राज्य मंत्री बनने का अवसर मिला। 1980 से 1990 तक वे अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा के मंत्रिमंडलों में कैबिनेट मंत्री रहीं और विभिन्न विभाग सम्हाले।

विमला जी प्रदेश कांग्रेस में किसी गुट विशेष में नहीं रहीं। इसीलिए उन्हें सभी कांग्रेस मुख्यमंत्रियों का विश्वास प्राप्त था। संगठन में भी उन्होंने दो बार प्रदेश कांग्रेस महासचिव पद की ज़िम्मेदारी सम्हाली। राजनीति के अलावा विमला जी को साहित्य और खेती बाड़ी से भी लगाव था। उनकी पढ़ने लिखने में गहन रूचि थी। दो वर्ष तक वे कॉलेज में व्याख्याता भी रहीं। सदन में उनकी भाजपा नेता शीतला सहाय से नोंक – झोंक पुराने विधायक अभी भी याद करते हैं। 17 मई ,2019 को 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

जमुना देवी: जमुना देवी मध्य प्रदेश की सबसे पुरानी महिला सांसदों में एक थीं। उनका पूरा जीवन आदिवासियों के कल्याण के लिए समर्पित रहा। 1962 में वे पहली बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंचीं। वे झाबुआ से चुनी गईं थीं।  1978 से 1981 तक वे राज्यसभा की सदस्य भी रहीं। प्रदेश सभी दलों के नेता उन्हें बुआ जी कहते थे। जमुना देवी स्वतंत्रता के बाद मध्य भारत राज्य की पहली विधानसभा की 1952 से 1957 तक सदस्य रहीं। इसके बाद वे नए मध्यप्रदेश में छह बार चुनाव जीत कर विधायक बनीं। उन्होंने राज्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री के तौर पर आदिम जाति, अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण जैसे विभागों का दायित्व संभाला।

जमुना देवी का जन्म 19 नवंबर 1929 को मध्य प्रदेश के धार जिले के सरदारपुर में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा हाईस्कूल तक कैनेडियन मिशन स्कूल इंदौर में हुई। कम उम्र में ही वे कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़कर सामाजिक कार्यों में सक्रिय हो गईं। संसदीय पारी के बाद जमुना देवी प्रदेश की राजनीति में आ गईं। उन्होंने मोतीलाल वोरा, श्यामाचरण शुक्ल के मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के तौर पर काम किया। दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में वे कैबिनेट मंत्री बनीं। 1998 में राज्य की उप मुख्यमंत्री भी बनीं। 2003 में उन्हें संसदीय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण करने पर संसदीय जीवन सम्मान से सम्मानित किया गया। 2001 में भारत ज्योति सम्मान भी मिला। मध्य प्रदेश में जब 2003 में भाजपा की सरकार बनी तो जमुना देवी ने लंबे समय तक राज्य में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर काम किया। इस दौरान वे जनता से जुड़े मुद्दों को गंभीरता से उठाती रहीं। 2010 मे 24 सितंबर को इंदौर में जमुना देवी का निधन हो गया।

मैमूना सुल्तान: नए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल 1957 में जब संसदीय सीट के तौर पर अस्तित्व में आई तो उसे मैमूना सुल्तान के रूप में पहली महिला सांसद मिलीं। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाली मैमूना स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी थीं और भोपाल को राजधानी बनाने के लिए संघर्ष करने वालों में शामिल थीं। मैमूना ने 1957 में अपने पहले चुनाव में हिंदू महासभा के हरदयाल देवगांव को शिकस्त दी। 1962 के चुनाव में उन्होंने हिंदू महासभा के उम्मीदवार ओमप्रकाश को पराजित किया। पर 1967 में जनसंघ के जेआर जोशी ने मैमूना को पराजित कर दिया। मैमूना मध्य प्रदेश कांग्रेस की सम्मानित नेता थीं। लोकसभा के बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें बाद में दो बार राज्यसभा में भी भेजा। वे 1974 और फिर 1980 में उच्च सदन के लिए चुनीं गईं। 1932 में जन्मी मैमूना सुल्तान का 2006 में निधन हो गया।

जयश्री बनर्जी: जबलपुर की वयोवृद्ध भाजपा नेता जयश्री बनर्जी महाकौशल क्षेत्र की सम्मानित भाजपा नेताओं में हैं। उनका जन्म 6 जुलाई 1934 को हुआ था। आज उनकी पहचान उनके अपने व्यक्तित्व से ज़्यादा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा की सास के रूप में है। लेकिन कभी वे जबलपुर में जनसंघ की सबसे जुझारू नेताओं में गिनी जाती थीं। वर्ष 1968 में जनसंघ ने उन्हें अपनी राष्ट्रीय कार्यसमिति में मनोनीत किया था। वर्ष 1973 से 74 तक वे पार्टी की जबलपुर ज़िला इकाई की अध्यक्ष और अगले तीन साल प्रदेश उपाध्यक्ष रहीं। वर्ष 1977 में पहली बार विधानसभा के लिए चुनी गईं और कैबिनेट मंत्री नियुक्त हुईं। बाद में उन्हें 1990 और 1993 में दो बार और विधायक बनने का मौका मिला। वर्ष 1999 में जबलपुर लोक सभा सीट से संसद पहुंची। संसद में जयश्री बनर्जी रक्षा ,गृह और महिला अधिकारिता मंत्रालयों की सलाहकार समितियों में सदस्य रहीं। उनके देवर विभाष भी उनके साथ ही 1977 में कटनी से विधायक चुने गए और मंत्री बने।

माया सिंह: विजयाराजे सिंधिया के छोटे भाई ध्यानेन्द्र सिंह की पत्नी माया सिंह 2016 से 2018 तक शिवराज सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहीं। उनका राजनीतिक जीवन का अधिकांश भाजपा के महिला संगठन में बीता। 1984 में वे ग्वालियर की महापौर थीं। सिंधिया घराने से ताल्लुक रखने वाली माया सिंह को लोग माई भी कहते हैं। श्रीमती सिंह का जन्म 15 अगस्त, 1950 को उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के सुजानपुर में हुआ था। वे मप्र राज्य महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष, भाजपा महिला मोर्चा की अखिल भारतीय महामंत्री तथा मप्र महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही। 1997 से 2000 तक भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रही। राज्यसभा में भी रही। 2013 में विधानसभा के लिए ग्वालियर पूर्व से विधायक चुनी गयीं।

डॉ. नजमा हेपतुल्ला: डॉ हेपतुल्ला की पहचान एक विदुषी के रूप में है। वे नरेन्द्र मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रह चुकी हैं और फिलहाल मणिपुर की राज्यपाल है। वे मुंबई कांग्रेस कमेटी की महासचिव और उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। नजमा जी 1980 में राज्यसभा सदस्य बनीं और  1985 से 1986 तथा 1988 से जुलाई 2007 तक इस सदन की उपसभापति रही हैं।  इस दौरान उन्होंने सदन की कार्यवाही का कुशल संचालन किया और सत्तापक्ष तथा विपक्ष में भी लोकप्रिय बनी रहीं।  वर्ष 2007 में वे उपराष्ट्रपति के चुनाव में हामिद अंसारी से 233 वोटों से हार गई थीं। 13 अप्रैल 1940 को भोपाल में जन्मी डॉ. हेपतुल्ला को राजनीति विरासत में मिली है। रिश्ते में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की नातिन हेपतुल्ला ने एमएससी करने के बाद हृदय रोग विज्ञान में पीएचडी प्राप्त की, लेकिन राजनीति में दिलचस्पी के कारण वह राजनीति में आई। डॉ. हेपतुल्ला भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की अध्यक्ष भी रही हैं।

कुसुम मेहदेले: अपने आक्रामक तेवर के लिए जानी जाने वाली कुसुम मेहदेले मप्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं। वे भाजपा के टिकट पर पन्ना निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए 2018 से पहले तक चुनी जाती रहीं। एक बच्चे को लात मारने के लिए विवादों में उनका नाम आया था। कथित तौर पर बच्चा उनसे पैसों की भीख माँग रहा था। 1984 से 1990 तक सुश्री महदेले तीन बार भारतीय जनता महिला मोर्चा में रहीं। साथ ही 1984-86 और 1995-96 में दो बार मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी की उपाध्यक्ष रहीं। 2005 में, उन्हें बाबूलाल गौर के मंत्रिमंडल में महिला और बाल विकास और राजस्व मंत्री के रूप में शामिल किया गया और उन्होंने शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में भी अपना स्थान बनाए रखा। 15 अगस्त 1943 को जन्मीं कुसुम महदेले पुलिस की नौकरी से राजनीति में आईं थीं और 1993 में पहली बार पन्ना से विधायक बनीं। सिर्फ एक बार 2008 के चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2018 में उनका टिकट काट दिया गया।

सुमित्रा महाजन: “ताई” के नाम से मशहूर सुमित्रा महाजन सोलहवीं लोकसभा की अध्यक्ष थीं। वे इस पद पर आसीन होने वाली भारत की दूसरी महिला थीं। उनसे पहले मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी थीं। सुमित्रा महाजन के इंदौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से 1989 से लगातार आठवीं बार सांसद बनी। उनका जन्म महाराष्ट्र के चिपलून में 12 अप्रैल 1943 को उषा और पुरुषोत्तम साठे के घर में हुआ और विवाह 29  जनवरी 1965 में इंदौर के जयंत महाजन के साथ हुआ। उन्होंने इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की।

सुमित्रा महाजन ने 1989  के आम चुनाव में पहली बार लोकसभा चुनाव में भाग लिया और उन्होंने कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी को हराया। इससे पहले इंदौर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से वो लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी थीं। सुमित्रा महाजन 2002 से 2004 तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल थीं। उन्हें मानव संसाधन, संचार तथा पेट्रोलियम मंत्रालय का काम दिया गया था। वो प्रथम महिला हैं जो कभी लोकसभा चुनावों में पराजित नहीं हुई। वो आठ बार लोकसभा चुनाव जीतने वाली प्रथम महिला सांसद हैं।

उर्मिला सिंह: हिमाचल प्रदेश की पूर्व राज्यपाल और मध्यप्रदेश कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष उर्मिला सिंह का जन्‍म अविभाजित मध्यप्रदेश के रायपुर  जिले के फिंगेश्वर गांव में 6 अगस्‍त 1946 को हुआ, जो अब छत्तीसगढ़ राज्य के अंतर्गत है। उनके पिता राजा नटवर सिंह एक स्‍वतंत्रता सेनानी थे। उर्मिला के परिवार के कुछ और सदस्‍य अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हैं। उन्होंने चंडीगढ़ से ही बीए और एलएलबी की उपाधि प्राप्त की।

उर्मिला जी की शादी छोटी उम्र में ही सरायपाली रियासत के राजकुमार वीरेन्द्र बहादुर सिंह से हो गई। उनके एक पुत्री और दो पुत्र हैं। उर्मिला जी  ने अपने आपको गृहस्थी में व्यस्त कर लिया। वीरेन्द्र कुमार कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए और अपने परिवार की पुरानी सीट घंसौर से चुनाव जीतकर मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य बने। कुछ सालों बाद वीरेन्‍द्र बहादुर का आकस्मिक निधन हो जाने के कारण उर्मिला राजनीति में आ गईं। उर्मिला ने अपने पति की चुनावी सीट घंसौर से ही चुनाव लड़ना शुरू किया। वे 1983 से 2003 तक लगातार चुनाव जीतकर विधानसभा की सदस्य बनीं। इससे पहले उन्होंने 1996 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। 1993 की राज्‍य सरकार में  मंत्री बनीं।

1996 में इन्‍हें मध्‍यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्‍यक्ष नियुक्‍त किया गया। 1998 में राज्‍य में कांग्रेस की सरकार में उर्मिला समाज कल्याण और आदिवासी कल्याण विभाग की मंत्री बनीं। 2001 में मध्यप्रदेश के बँटवारे के बाद वे छत्तीसगढ़ चली गईं। उनकी संसदीय क्षेत्र और विधानसभा सीट – दोनों ही नए राज्‍य में चली गईं। इस तरह उर्मिला जी छत्तीसगढ़ राज्‍य की पहली विधानसभा की सदस्‍य बनीं। लेकिन 2003 और फिर 2008 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। 2010 में उर्मिला जी को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। 2018 में उनका देहावसान हो गया।

डॉ कल्पना परुलेकर :डॉ परुलेकर तेज तर्रार महिला नेत्री थीं। वे प्रदेश की पहली विधायक थीं जिन्हे मानहानि के मामलों में दो बार अदालत से सजा हुई।  दो जनवरी ,2019 को उनका बीमारी के चलते निधन हो गया। वे उज्जैन जिले की महिदपुर से सन् 1998 और सन 2008 में विधायक चुनी गईं। उन्होंने एक बार कांग्रेस से विद्रोह कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा था जिसमें उनकी जमानत जब्त हो गई थी।

1952 में जन्मी  कल्पना परुलेकर अपनी आक्रामक शैली के लिए जानी जाती थीं। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ़ किसानों की लड़ाई लड़ने के कारण छह माह जेल में रहीं। उन्होंने मध्य प्रदेश दिशा किसान संगठन बनाया था जिसकी वह प्रदेश अध्यक्ष थीं। वर्ष 2017 भोपाल की एक अदालत ने उन्हें एक साल की  जेल और दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। लेकिन बाद में अदालत ने उनकी जमानत अर्जी मंजूर कर ली। उन पर विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव बी.डी. इसरानी ने वर्ष 2009 में मानहानि का मामला दर्ज करवाया था। डॉ कल्पना ने श्री इसरानी पर फर्जी डिग्री और दस्तावेजों में छेड़खानी करते हुए पद हासिल करने के आरोप लगाए थे।

अप्रैल 2017 में भोपाल की एक अदालत ने कल्पना परुलेकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की फोटो से छेड़छाड़ करने के मामले में दो साल की सजा सुनाई। हालांकि, सज़ा सुनाने के बाद उन्हें अदालत से जमानत भी मिल गई। अदालत ने डॉ कल्पना को आईटी कानून एवं भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिया।  कल्पना ने 29 नवंबर 2011 को संवाददाताओं को तत्कालीन लोकायुक्त पीपी नावलेकर की एक फोटो उपलब्ध कराई थी, जिसमें नावलेकर को आरएसएस के गणवेश में दिखाया गया था। उन्होंने नावलेकर पर आरोप लगाया था कि आरएसएस से सांठगांठ की वजह से लोकायुक्त भ्रष्ट मंत्रियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

यशोधरा राजे: विजयाराजे सिंधिया की सबसे छोटी बेटी यशोधरा मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लंदन में 19 जून 1954 को जन्मी यशोधरा 1998 में पहली बार शिवपुरी से विधायक चुनी गईं। 2007 में ग्वालियर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा से निर्वाचित हुईं। 2009 में वे दोबारा चुनी गईं। वर्ष 2013 में वे फिर शिवपुरी से विधानसभा के लिए चुनी गईं। 2018 में पुनः विधायक बनीं। यशोधरा राजे वर्तमान में प्रदेश की खेल एवं युवा कल्याण मंत्री हैं।

डॉ विजयलक्ष्मी साधो: डॉ साधो अलग-अलग समय पर कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। 13 नवम्बर 1955 को पैदा हुई विजयलक्ष्मी जी ने भोपाल के गाँधी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की है। अपने पिता और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीताराम साधो की छत्र छाया में विजयलक्ष्मी छात्र जीवन से ही युवक कांग्रेस से जुड़ गईं थीं। प्रदेश युवक कांग्रेस की वे महामंत्री 1985 से 1992 तक रहीं। 1985 में ही उन्हें महेश्वर सीट से जीतकर विधानसभा पहुँचने का अवसर मिला। दो विधानसभा चुनाव ( 1990 और 1993 ) में उन्हें अपनी सीट पर हार  का सामना करना पड़ा। कुल पांच बार वे विधायक रहीं। 2010 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। कार्यकाल समाप्त होने के दो साल बाद 2018 में वे फिर से विधानसभा पहुंची और कमल नाथ सरकार में मंत्री बनीं।

अनुसुइया उइके: आदिवासी समुदाय से आने वाली अनुसुइया जी पहली बार दमुआ विधानसभा क्षेत्र से 1985 में कांग्रेस की टिकट पर जीतकर विधायक बनीं। अर्जुन सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री 1988 में अनुसुइया को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी और महिला और बाल विकास विभाग का मंत्री बनाया। बाद में कांग्रेस से टिकट कटने पर अनुसुइया भाजपा में चली गईं और 2006 में पार्टी की तरफ से राज्यसभा के लिए मनोनीत हुई। 16 जुलाई 2019 को मोदी सरकार ने उन्हें छत्तीसगढ़ का राज्यपाल बनाया। सुश्री उइके ने छिंदवाड़ा कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि पाई है। उनका जन्म 10 अप्रैल 1957 को हुआ था।

उमा भारती: सुश्री भारती का जन्म 3 मई 1959 को टीकमगढ़ जिले के डूँडा में एक लोधी राजपूत परिवार में हुआ था। उन्हें विजया राजे सिंधिया ने आगे बढ़ाया। छठवीं कक्षा तक पढ़ीं उमा युवावस्था में ही भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गई थीं। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1984  में खजुराहो लोकसभा सीट से लड़ा, परंतु हार गयीं। 1989 के लोकसभा चुनाव में वह खजुराहो संसदीय क्षेत्र से सांसद चुनी गईं और 1998 तक उन्होंने यह सीट बरकरार रखी।1999 में वह भोपाल से सांसद चुनी गयीं। वाजपेयी सरकार में उन्होंने मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा मामले एवं खेल और अंत में कोयला और खदान जैसे विभिन्न राज्य स्तरीय और कैबिनेट स्तर के विभागों में कार्य किया।

2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में, उनके नेतृत्व में भाजपा ने तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया और मुख्यमंत्री बनीं। अगस्त 2004 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, जब उनके खिलाफ 1994  के हुबली दंगों के सम्बन्ध में गिरफ़्तारी वारंट जारी हुआ। नवम्बर 2004 में लालकृष्ण आडवाणी की खुली आलोचना के बाद उन्हें भाजपा से से बर्खास्त कर दिया गया। अगले साल वह पार्टी से हट गयी क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। उन्होंने तब भारतीय जनशक्ति पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बना ली।

7 जून 2011  को उनकी पुनः भाजपा में वापसी हुई।  मार्च 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह महोबा जिले की चरखारी सीट से विधानसभा सदस्य चुनी गईं। वर्ष 2014 में वे झांसी से 16वीं लोकसभा की सदस्य चुनी गईं और उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में  जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया।

कल्याणी पांडेय: मध्यप्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार ( 1990 -1992 ) के दौरान विधानसभा में एक अत्यंत अशोभनीय घटना हुई जो चप्पल -चूड़ी कांड के नाम से कुख्यात हुई। सदन में भाजपा के वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव,जो बाद में मंत्री भी बने, ने एक महिला कांग्रेस विधायक के कुंवारेपन को लेकर बेहद भद्दी टिप्पणी कर दी। विधानसभा में जबरदस्त हंगामा हो गया। गुस्से से तमतमाई महिला विधायक कल्याणी पांडेय ने भाजपा विधायक को निशाना बनाकर चप्पल फेंकी। माहौल इतना बिगड़ गया कि मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को कहना पड़ा कि इस शर्मनाक घटना ने पूरे सदन को शर्मसार किया है।

कल्याणी पांडेय की उम्र तब 31 साल थी। वे जबलपुर जिले की पाटन सीट से कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हुईं थीं। उन्होंने जबलपुर वि.वि. से कला संकाय में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री ली। वर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद कल्याणी को कांग्रेस ने जबलपुर महापौर बनने का अवसर दिया। तब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। कल्याणी की तरह दिग्विजय सिंह ने भी स्वामी स्वरूपानंद से दीक्षा ली है और इस नाते दोनों गुरु भाई -बहन हैं। कल्याणी को 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिवनी से टिकट दी लेकिन वे भाजपा की नीता पटेरिया से हार  गईं। वर्ष 1960 में जन्मी कल्याणी जबलपुर में रहकर धार्मिक -सामाजिक कार्यों में हाथ बंटाती है।

करुणा शुक्ला: 1 अगस्त 1950 को ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े भाई अवध बिहारी वाजपेयी की बेटी  करुणा का जन्म हुआ था। ग्वालियर के शिंदे छावनी इलाके में रहते हुए करुणा जी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। आगे की उनकी पढ़ाई भोपाल के हमीदिया कॉलेज और महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज से हुई। करुणा शुक्ला समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर थीं, उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1993 में वे पहली बार बलौदाबाज़ार क्षेत्र से विधायक चुनी गईं। उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक का खिताब मिला था। 2004 के लोकसभा के चुनावों में बतौर भाजपा प्रत्याशी उन्होंने जांजगीर सीट जीती, लेकिन 2009 के चुनावों में करुणा कांग्रेस के चरणदास महंत से हार गईं थीं। उस चुनाव में छत्तीसगढ़ में करुणा ही भाजपा की अकेली प्रत्याशी थीं जो चुनाव हारी थीं, बाकी की सभी सीटें पार्टी के खाते में गई थीं। भाजपा में रहते हुए करुणा कई महत्वपूर्ण पदों पर रहीं जिनमें भाजपा महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी है। 1982 से 2013 तक यानि 32 साल भाजपा में रहने के बाद इतनी अलग थलग पड़ गईं कि उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। करुणा जी ने 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जांजगीर से लोकसभा लड़ा,लेकिन भाजपा के लखनलाल साहू ने पौने दो लाख से कुछ अधिक वोटों से उन्हें हरा दिया।

मालिनी गौड़: इंदौर की महापौर के रूप में मालिनी गौड़ के काम को देशभर में सराहना मिली है। उनके नेतृत्व में इंदौर नगर निगम ने अभूतपूर्व स्वच्छता अभियान चलाकर शहर की तस्वीर बदल दी। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी स्वच्छता में देश भर में सिरमौर है। लगातार चार वर्षों तक सबसे साफ शहर का ख़िताब पाकर इंदौर पूरे देश के लिए मिसाल बन गया है। विधायक पति लक्ष्मण सिंह गौड़ की वर्ष 2008 में एक सड़क हादसे में मृत्यु के बाद म उनकी जगह मालिनी को इंदौर – 4 विधानसभा सीट पर भाजपा ने खड़ा किया। वर्ष 2015 में वे इंदौर की महापौर निर्वाचित हुईं। 19 जून 1961 को जन्मी मालिनी का 1983 में लक्ष्मण सिंह से विवाह हुआ था।

अर्चना चिटनीस: बुरहानपुर सीट से तीन बार विधायक रही सुश्री अर्चना चिटणीस को राजनीतिक विरासत पिता बृजमोहन मिश्रा से मिली थी, जो 1990 से 1993 तक सुंदरलाल पटवा सरकार के समय विधानसभा अध्यक्ष थे। 20 अप्रैल,1964 को जन्मीं अर्चना 2003 से 2018 तक विधायक रहीं। अपने पहले ही कार्यकाल में उन्हें शिक्षा मंत्री बनने का अवसर मिला। वर्ष 2016 में उन्हें तीसरी बार मंत्रिमंडल में शामिल कर शिवराज सिंह चौहान ने महिला एवं बाल विकास विभाग सौंपा। वर्ष 2018 का चुनाव वे बुरहानपुर सीट से हार गईं।

ज्योति धुर्वे: बैतूल ( अनुसूचित जनजाति ) सीट से सांसद ज्योति धुर्वे 2009 में भाजपा से पहली बार चुनी गईं थीं। 2017 में उनका जाति प्रमाण-पत्र बैतूल कलेक्टर तरुण पिथोड़े ने निरस्त कर दिया था। सरकार के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग की एक उच्चाधिकार छानबीन समिति ने सांसद ज्योति धुर्वे के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त करने संबंधी अपने पिछले निर्णय को बरकरार रखा है। विभाग ने बैतूल ज़िला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को इस मामले में उचित कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश भी जारी किए थे । आदेश में कहा गया है कि धुर्वे की जाति निर्विवाद रूप से बिसेन / पवार हैं और यह मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित नहीं है। धुर्वे को गोंड आदिवासी होने के आधार पर जारी किया गया जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने का भी निर्देश दिया था। लेकिन शिवराज सरकार ने इस मामले में कोई करवाई नहीं की और 2019 में ज्योति एक बार फिर संसद के लिए चुन कर आ गईं। 2 जून 1966 को रायपुर में जन्मी ज्योति स्नातकोत्तर शिक्षित हैं। उनके पति प्रेम सिंह धुर्वे का निधन हो चुका है।

मीनाक्षी नटराजन: मीनाक्षी नटराजन कांग्रेस की युवा नेता हैं। वे बौद्धिक प्रखरता और प्रगतिशील विचारों के लिए जानी जाती हैं। वे राहुल गाँधी के क़रीबी युवा नेताओं में हैं। मीनाक्षी लेखिका भी हैं, महाभारत की पृष्ठभूमि पर लिखा उनका उपन्यास ‘अपने-अपने कुरुक्षेत्र’ खासा चर्चित रहा। सुश्री नटराजन का जन्म 23 जुलाई 1973 को बिरला ग्राम, नागदा में हुआ था। उन्होंने जैव रसायन में स्नातक किया एवं कानून में स्नातक की डिग्री देवी अहिल्या वि.वि.से प्राप्त की। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन में शामिल होकर उन्होंने राजनीति में भाग लेना प्रारम्भ किया। वे संगठन की 1999 से 2002 तक अध्यक्ष रहीं। उन्होंने 2002 से तीन साल तक युवक कांग्रेस की मध्यप्रदेश इकाई की बागडोर संभाली।

वर्ष 2008 में राहुल गाँधी में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाया। 2009 के लोकसभा चुनाव में मीनाक्षी ने मंदसौर लोकसभा सीट पर अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के लक्ष्मीनारायण पांडे  30 हज़ार से अधिक वोटों से हरा दिया। श्री पांडे 1971 से यहाँ से लगातार चुनाव जीतते हुए आ रहे थे। लेकिन 2014 में भाजपा के सुधीर गुप्ता ने सुश्री नटराजन को 3 लाख से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। एक साधारण परिवार में जन्मी मीनाक्षी ने बिना किसी गॉडफादर का सहारा लिए कांग्रेस में अपना सम्मानजनक मुकाम बनाया है ।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

© मीडियाटिक

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