छाया : प्रीति तामोट
चित्रकला विमर्श
• सारिका ठाकुर
सांस्कृतिक वैभव से संपन्न मध्यप्रदेश में चित्रकला का एक छोर असंख्य शैलाश्रयों में आदि मानव द्वारा बनाए गए चित्रों को स्पर्श करता है तो दूसरा छोर सैयद हैदर रज़ा और मकबूल फ़िदा हुसैन को। इस बीच के कालखंड में कई महिला चित्रकारों के नाम भी मोतियों की तरह गुंथे हुए हैं लेकिन समय क्रम की दृष्टि से इनकी आमद बहुत बाद में हुई। रियासत काल के राजे-महाराजाओं के संरक्षण में यह कला खूब पुष्पित पल्लवित हुई, यहाँ तक कि चित्रकला की ग्वालियरी शैली को इसी दौर में अलग पहचान मिली, परन्तु इनमें एक भी महिला चित्रकार का नाम दर्ज नहीं है।
सबसे पहले जो नाम चित्रकला के क्षेत्र में ध्यान आता है वह देवयानी कृष्णा का है। सन 1918 इंदौर में जन्मी और यहीं से कला शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने प्रदेश की पहली महिला चित्रकार होने का गौरव प्राप्त किया। उन्होंने प्रिंट-मेकिंग में महत्वपूर्ण काम तो किया ही, कोलोग्राफ़ी में बहुत सा काम किया और काफ़ी काम सिरेमिक में भी किया। एक समय ऐसा भी आया जब देश के तीन महत्वपूर्ण प्रिंट-मेकर में उनका नाम लिया जाता था। सोमनाथ होर, कँवल कृष्ण और देवयानी कृष्णा। कृष्णा जी ने जब काम शुरू किया तब इस क्षेत्र में महिलाओं का दखल लगभग नहीं था और उन्होंने अनेक धर्मों के पुराने धार्मिक प्रतीकों के साथ नयी तकनीक को मिलाकर बहुत ही खूबसूरत ढंग से स्त्री कलाकार के देखने को रेखांकित किया।
इसके बाद की कड़ी में बी. प्रभा का नाम रेखांकित करने योग्य है। सन 1931 में मध्य प्रान्त और बरार की राजधानी नागपुर में जन्मी प्रभा जी का नाम चित्रकला के क्षेत्र में हुसैन के बाद सबसे ज्यादा प्रसिद्ध था। बी. विठ्ठल से शादी होने के बाद वे मुंबई रहने लगी थीं। अमृता शेरगिल के बाद भारतीय विषयों पर चित्र बनाने का ज़िम्मा आप ही ने पूरा किया। 1935 में जन्मी उज्जैन की शिवकुमारी जोशी वह महत्वपूर्ण नाम है जिन्होंने चित्रकला के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को गौरवान्वित किया। प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री वाकणकर जी की उज्जैन में स्थापित चित्रकला शाला कला भवन ने कई प्रतिभाओं को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उनमें शिवकुमारी जोशी का नाम अग्रणी है। शिवकुमारी जी ने कला की अनेक विधाओं में दक्षता हासिल की, जैसे- संयोजन, व्यक्ति चित्रण, दृश्य चित्रण, अलंकरण, स्थिर चित्रण, नेचर स्टडी, रेखांकन, कोलाज आदि। तथापि सबसे ज्यादा इनकी रुचि संयोजन, दृश्य-चित्रण एवं नेचर स्टडी में रही है। संयोजन अधिकांश वॉश और टेम्परा में बनाये। शिवकुमारी जी वॉश तकनीक की भी सिद्धहस्त कलाकार थीं। कालिदास साहित्य, ग्रामीण जीवन एवं लोकोत्सव इनके प्रिय विषय रहे । कालिदास साहित्य की नायिकाओं एवं मेघदूत की यक्षणियों का लावण्यपूर्ण चित्रण उन्हें अग्रिम पंक्ति के चित्रकारों में लाकर खड़ा कर देता है।
मध्यप्रदेश राज्य गठन के पूर्व और बाद में भी कला एवं संस्कृति को प्रश्रय देने वाली कई संस्थानों का जन्म हो चुका था जैसे – ललित कला संस्थान, इंदौर( होलकर महाराजा के सहयोग से 1927), लक्ष्मी कला-भवन, धार (राजमाता के सहयोग से 1938 में) भारतीय कला भवन (1953), भारतीय कला भवन ललित कला महाविद्यालय(1954), ललित कला संस्थान, जबलपुर (1961), भारतीय कला भवन आदि। इन ललित कला केंद्रों से निकली प्रतिभाएं सूर्य की रश्मियों की भांति चारों ओर फैल रही थीं, दुर्भाग्यवश यहाँ तक महिलाओं की पहुँच नहीं थी। यद्यपि ललित कला संस्थान, ग्वालियर की छात्रा डॉ. राजुल भंडारी एवं श्रीमती पुष्पा काले का जिक्र अवश्य आता है। डॉ. राजुल भंडारी ने चित्रकला के अलावा मूर्तिकला को भी अपनाया और उसी विधा में स्थापित हुईं। बाद में वह संस्थान की प्राचार्या भी बनीं।
वर्तमान में सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी श्री राहुल द्रविड़ की माँ के नाम से पहचानी जाने वाली श्रीमती पुष्पा काले का जन्म इंदौर में 23 जनवरी 1941 को श्री बालकृष्ण श्रीधर काले एवं श्रीमती मनोरमा काले के परिवार में सबसे छोटी संतान के रूप में हुआ था । उनके पिता मनोवैज्ञानिक माँ मनोरमा काले गृहिणी थीं। पुष्पा जी महारानी लक्ष्मीबाई गर्ल्स कॉलेज, इंदौर में चित्रकला विभाग की प्रथम व्याख्याता के तौर पर नियुक्त हुई थीं। वर्ष 1967 में निजी कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत श्री एस.वी. द्रविड़ से विवाह के उपरान्त वह बेंगलुरु आ गईं। लगभग 40 सोलो प्रदर्शनियों में हिस्सा ले चुकीं पुष्पा जी बंगलौर के ‘वास्तुकला विभाग में व्याख्याता के पद के पद पर काम करने लगीं और और उनका परिवार वहीं बस गया।
वर्ष 1982 में भोपाल में भारत भवन की स्थापना के बाद मध्यप्रदेश के कला जगत में अनोखी हलचल शुरू हुई। चित्रकला कैनवास के अलावा विभिन्न विधाओं में आकार लेने लगी। कार्यशालाओं में देश के बड़े-बड़े कलाकार शामिल होने लगे। प्राकृतिक सौंदर्य, उन्नत स्टूडियो के साथ-साथ दिग्गज कलाकारों के मार्गदर्शन ने देश भर का ध्यान आकृष्ट किया। सबसे बड़ा बदलाव यह देखने को मिला कि अब महिलाएं भी चित्रकला में बढ़ चढ़कर स्वयं को आजमाने लगी थी। ऐतिहासिक बदलाव के उस कालक्रम में ही भारत भवन से शोभा घारे, सीमा घुरैया और जया विवेक जैसी चित्रकार जुड़ीं। इन्हें भारत भवन से जुड़ने वाली महिला चित्रकारों की पहली पीढ़ी कहा जा सकता है। तब भारत भवन से जुड़ने वाले कलाकारों में छात्र और प्रशिक्षकों के अलावा वे कलाकार भी थे जो किराए पर स्टूडियो लेकर स्वतंत्र रूप से काम कर रहे थे। शोभा घारे इसी तरीके से भारत भवन से जुड़ी थीं। वे जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, मुंबई से प्रशिक्षण लेकर लौटी थीं एवं अम्लांकन के लिए जिस मशीन की जरुरत उन्हें थी वह यहीं उपलब्ध थी। देश के प्रमुख प्रदर्शनियों में हिस्सा लेते हुए वह देश के अग्रिम पंक्ति के चित्रकारों में शुमार होने लगीं। वर्तमान में वे भोपाल में निवास कर रही हैं एवं अभी भी सक्रिय हैं।
ग्वालियर की मूल निवासी सीमा घुरैया का जन्म 1964 में हुआ था। उन्होंने जीवाजी विश्वविद्यालय से ही चित्रकला में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। उसके बाद भोपाल आकर वे भारत भवन से जुड़ गईं, जहां उन्हें कई अनुभवी कला गुरुओं से मार्गदर्शन का अवसर प्राप्त हुआ। प्रतिभा संपन्न सीमा घुरैया मध्यप्रदेश की उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं जिन्होंने अपने जीवन में कलाकर्म के अलावा कुछ भी नहीं किया। उनके अमूर्त शैली के चित्रों की ख्याति धीरे-धीरे आसमान छूने लगी और वे मानो उन सबसे अनभिज्ञ अपने काम में डूबी रहतीं। वर्ष 2002 का रज़ा फ़ाउंडेशन अवार्ड एवं 2018 में मध्यप्रदेश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘शिखर सम्मान’ सहित उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। वे कैंसर से पीड़ित थीं और वर्ष 2020 में इस दुनिया को छोड़कर चली गईं। इस हादसे को मध्यप्रदेश कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति कहा जा सकता है।
चित्रकला कला जगत में इसके बाद का दौर प्रीति तामोट, स्मृति दीक्षित, विशाखा आप्टे एवं अपर्णा अनिल का रहा। प्रीति तामोट श्री वाकणकर द्वारा संचालित कला भवन की छात्रा हैं। वहां उन्हें वाकणकर जी सहित कई कला गुरुओं का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था। उज्जैन से ही फाइन आर्ट में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने के बाद वह भोपाल आकर भारत भवन से जुड़ीं। इनकी कृतियाँ देश के लगभग सभी प्रमुख कला दीर्घाओं में प्रदर्शित एवं प्रसंशित हुए एवं इन्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से भी नवाज़ा गया। भोपाल की प्रतिभाशाली कलाकार स्मृति दीक्षित ने नए माध्यम में काम कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। उनकी अनेक प्रदर्शनियाँ देश-विदेश में हुई और भारतीय कला जगत में अपना नया स्थान बनाया।
इसी श्रेणी में विशाखा आप्टे का नाम भी उल्लेखनीय है, इनकी कृतियाँ देश के प्रमुख कला दीर्घाओं के अलावा विदेशों में भी सराही गईं। इन्हीं की समकालीन अपर्णा अनिल ने भी कला जगत में राष्ट्रीय स्तर पर सोलो एवं समूह की प्रदर्शनियों में सम्मिलित हुई और अपनी अलग पहचान बनाई। इसके अलावा ग्वालियर फ़ाइन आर्ट कॉलेज की प्राचार्या सुश्री अपर्णा कुमार ने पेंटिंग के क्षेत्र में अध्यापन का काम करते हुए कला को सृजित किया है। महारानी लक्ष्मी बाई महाविद्यालय, भोपाल की प्रो. सुश्री मंजूषा गांगुली कोलाज के क्षेत्र में दक्षता हासिल करने वाली एकमात्र महिला चित्रकार हैं। अर्पिता रेड्डी ने केरल की मंदिरों की पारंपरिक चित्र शैली को आधुनिक स्वरूप देते हुए पहचान दी है। भोपाल की मधु शुक्ला ने श्वेत- श्याम ड्रॉइंग में अमूर्त से अपनी काम की शुरूआत की और उसके बाद वे पेंटिंग की दुनिया में प्रवेश कर गई। भोपाल की ही संजू जैन ने अमूर्त शैली में उल्लेखनीय कार्य किया है।
2014 तक महिला चित्रकारों का एक अच्छा खासा कुनबा तैयार हो गया, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। ग्वालियर की सीमा कदम ड्रॉइंग एवं पेंटिंग दोनों में काम कर रही हैं। इंदौर की मीरा गुप्ता ने राजस्थान की साज कला को अपनाते हुए मिनिएचर में अपनी जगह बनाई है। इसी तरह भोपाल की ही, प्रीति भटनागर ने भी राजस्थानी मिनिएचर पेंटिंग में विशिष्टता हासिल की है। अश्विनी विधाते एकमात्र ऐसी कलाकार हैं, जो फोटो से पेंटिंग बनाती हैं। इसी कड़ी में भोपाल की आरती पालीवाल, वीणा जैन, रूपीन्दर कौर, शुभा भट्टी, सुनीता शर्मा, रेखा भटनागर, विदुषी भटनागर, क्षमा कुलश्रेष्ठ, सुश्री फ़यज़ा, प्रीति खरे, सिमरन सिद्धू, गायत्री गौड़, वीणा एवं मधु शर्मा का नाम भी उल्लेखनीय है|
वर्तमान समय में इंदौर से मोनिका सेठ, प्रीति मान, शबनम शाह, मोनिका सोलंकी, ज्योति सिंह, अपर्णा बिदासरिया, गुंजन लढ्ढा, समिधा पालीवाल, दिव्यांशी पंवार, स्वर्णिमा रिचारिया, ग्वालियर से एकता शर्मा, इंदू राव, वन्दना कुमारी और जबलपुर से शुभी जैन, रजनी भोंसले, नीता श्रीवास्तव, सुप्रिया अम्बर, आदि अनेक महिला कलाकारों ने देश-विदेश में लगातार प्रदर्शनी की और अपनी जगह बनाई। उल्लेखनीय है कि इन सभी कलाकारों ने कैनवास पर पेंटिंग के अलावा चित्रकला की अलग-अलग विधाओं में खुद को आज़माया और दक्षता हासिल की। इन प्रतिभाओं की उपस्थिति भविष्य के प्रति आश्वस्त करती हैं।
सन्दर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ
सहयोग: अखिलेश अखिल एवं देवीलाल पाटीदार
© मीडियाटिक
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