छाया: देशबन्धु
• नर्मदापुरम की अनोखी पिंक पंचायत में साकार होता संविधान
• जहां महिला जनप्रतिनिधि करती हैं मजदूरी, लेती हैं ग्राम विकास के फैसले
• अक्षय नेमा
नर्मदापुरम, देशबन्धु। मैं अपने देश का झंडा पहचानती हूं, अपने घर परिवार की जिम्मेदारी समझती हूं। मजदूरी करना जानती हूं यहां तक की गांव की जरूरतें क्या हैं, यह भी मुझे मालूम हैं। पर संविधान क्या होता है, यह शब्द ही पहली बार सुना है। कभी कभी लगता है बदलाव की हवा चल रही है। असंभव सा संभव हो रहा है। इसी बदलाव के कारण शायद मैं सरपंच बन पाई हूं। हो सकता है आप इसे ही संविधान कहते हों। यह कहना है जिला नर्मदापुरम के आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक केसला की ग्राम पंचायत मलोथर में निर्विरोध निर्वाचित महिला सरपंच संगीता बाई धुर्वे का। बता दें कि, मलोथर ग्राम पंचायत ने नर्मदापुरम जिले की पहली पिंक पंचायत का दर्जा हासिल किया है। पिंक पंचायत यानी पूरी की पूरी महिलाओं की सत्ता वाली पंचायत। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर इस पंचायत में खास बात यह है कि यहां सरपंच के साथ सभी 10 पंच महिलाएं हैं। लगभग 836 आबादी वाली यह ग्राम पंचायत तीन गांवों से मिल कर बनी है। मलोथर, कूकड़ी और मेहंदबाड़ी (महेंद्रगढ़) गांव में 446 पुरुष तथा 390 महिलाएं हैं।
इस पिंक पंचायत के बनने और सपनों की कहानी आप भी जानेंगे तो लगेगा कि भले ही इन्हें संविधान की शक्तियों, उसकी धाराओं और अनुच्छेदों के बारे में कुछ भी मालूम न हो, लेकिन गुजरते वक्त के साथ संविधान की व्यवस्थाएं यहां जीवंत हो उठी हैं। मलोथर में आप पाएंगे कि किस तरह संविधान के 73वें संशोधन-1992 के तहत पंचायतों की सत्ता में महिलाओं का आरक्षण सुनिश्चित होने के बाद उनकी भागीदारी मजबूत हो रही है। संविधान की धारा-15 के तहत लैंगिक समानता और अधिकारों का भाव सशक्त हो रहा है, कैसे संविधान की धारा 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की व्यवस्था फलीभूत हो रही है। ज्ञात हो कि संविधान के 73वें संशोधन-1992 के तहत पंचायतों में महिलाओं को एक तिहाई अर्थात 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था। राज्यों को छूट दी गई कि वह पंचायत राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 50 फीसदी तक आरक्षण दे सकते हैं। मप्र में हालिया पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी तक आरक्षण दिया गया। लेकिन अभी तक यही देखने में आता रहा है कि पंचायतों में सरपंच भले ही महिलाएं चुनी जाएं, लेकिन उन्हें घर की चौखट से बाहर यदा कदा ही निकलने दिया जाता था और सारी जिम्मेदारी और फैसले लेने, हिसाब-किताब का काम पुरुष करते थे। यहीं से शुरू होता था महिला सरपंचों के संवैधानिक अधिकारों का सामाजिक हनन। लेकिन इसका उलट उदाहरण मलोथर पंचायत में देखा जा सकता है। जहां निर्वाचित महिलाएं पंचायत के दफ्तर में बैठकर गांव के विकास पर चर्चा करती हैं और फैसले खुद करती है। अलबत्ता पुरुष सलाह-मशविरे में शामिल जरूर होते हैं, लेकिन जोर-जबरदस्ती किसी की नहीं चलती। यह तस्वीर बताती है कि किस तरह धीरे धीरे ही सही, पंचायतों में महिला सशक्तिकरण मुखर और सशक्त हो रहा है।
एक मत से तय किया, पिंक पंचायत बनाएंगे
ग्रामीणों ने बताया कि मलोथर पंचायत में सरपंच पद तो आदिवासी महिला के लिए आरक्षित था, लेकिन पंचों के पद पर किसी भी वर्ग के महिला, पुरुष चुने जा सकते थे। लेकिन इन पदों के लिए आए आवेदनों पर विचार करने के बाद सभी लोगों, खासतौर पर पुरुषों ने आगे बढक़र पंचायत की चौपाल में एक मत से यह तय किया कि इस बार सभी पंच महिलाओं को बनाएंगे और वह भी निर्विरोध। इसी समानता के भाव से मलोथर नर्मदापुरम की पहली पिंक पंचायत बन गई। जिसमें आज संगीता बाई धुर्वे सरपंच हैं तो सुभ्रदा सदामीलाल कटारे, ममता संजय, अमराबाई कैलाश, जयश्री नरेंद्र साध, सीताबाई सुमंत उइके, लक्ष्मीबाई जीवनलाल साध, अनिता कैलाश साहू, सुनीता बाई मदनलाल, सुबेदी महेश कुमार, सुनीता हरिप्रसाद पंच हैं। सरकार की घोषणा के मुताबिक पंचायती राज का श्रेष्ठतम उदाहरण बनी इस पंचायत को विकास के लिए सरकार 15 लाख रुपए का ईनाम देगी।
गांव का विकास हमारी प्राथमिकता
सरपंच संगीता बाई धुर्वे ने कहा कि गांव का विकास हमारी प्राथमिकता है। जिस प्रकार घर, परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उसी प्रकार पंचायत की जिम्मेदारी निभाएंगे। सडक़, पानी सभी क्षेत्रों में विकास किया जाएगा। सरपंच संगीता बाई का कहना है कि वे पढ़ी लिखी नहीं हैं। वे नहीं जानती स्मार्ट गांव का अर्थ, परंतु उनकी आंखों में ग्राम विकास को लेकर एक सपना है। वे चाहती हैं कि गांव में ग्रामीण शुद्ध पानी पिए। गांव में साफ सफाई हो। बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था हो और बेहतर सडक़ें नाली हो। उन्हें जब संवैधानिक अधिकारों के बारे में बताया गया तो उनका कहना है कि गांव में शिक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जायेगा। बच्चियों के पढ़ने लिखने के लिए स्कूल होंगे। उन्हें संविधान से प्राप्त मौलिक अधिकारों के बारे में बताया जाएगा। उनका कहना है कि जीवन में संविधान बहुत जरूरी हैं। वहीं पंच ममता बाई और सुनीता बाई का कहना है कि उनका परिवार मजदूरी करता है, उन पर ग्राम के विकास की जिम्मेदारी भी आएगी यह कभी नहीं सोचा था। उनका कहना है कि अब जब जिम्मेदारी मिली है तो वह भी बखूबी निभाएंगी।
पिंक पंचायत जहां सरपंच सहित पंच करती हैं मजदूरी
पंचायत के विकास की कमान संभालनें वाली ये महिलाएं कल्पना के आसमान से उतरीं कोई परियां नहीं हैं, बल्कि उसी माटी पर जन्मी, पली बढ़ीं या ब्याह के बाद आई वो महिला जनप्रतिनिधि हैं, जो भरण पोषण के लिए खेतों में काम करती हैं या मेहनत मजदूरी करती हैं।
जब देशबन्धु की टीम गांव पहुंची तो पता चला सरपंच मजदूरी के लिए गई है। हमारी टीम उस खेत तक पहुंची जहां महिला सरपंच थी। वहां पता चला कि ग्राम पंचायत में नव निर्वाचित सरपंच सहित 3 महिला पंच खेतों में भुट्टे तोडऩे का काम कर रही हैं। उनका पसीना अपने परिवार के भरण पोषण के लिए बह रहा था तो आंखें पंचायत में विकास की इबारत का सपना बुन रही थीं। इनमें से अधिकांश पढऩा लिखना बहुत कम जानती है। कोई तीसरी पास है, तो कोई स्कूल गई ही नहीं हैं। यह सभी पहली बार चुनकर पंचायत पहुंची है, लेकिन अपने खेत-खलिहान, घर- बाहर याने गांव की बुनियादी समस्याओं, उसकी जरूरतों से बखूबी वाकिफ हैं।
जिले की 428 ग्राम पंचायतों में 218 महिला सरपंच
विकासखंड कुल पंचायत महिला सरपंच
सिवनी मालवा 96 49
केसला 52 26
नर्मदापुरम 49 25
माखननगर 64 33
सोहागपुर 63 32
पिपरिया 51 26
बनखेड़ी 53 27
कुल 428 218
संदर्भ स्रोत- देशबन्धु
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