स्नेहा खरे 

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स्नेहा

स्नेहा खरे 

snehakhare123@gmail.com

2023-01-25 04:19:06

जन्म: 24 अक्टूबर 77, स्थान: भोपाल.

 

माता: स्व. रमा खरे, पिता: गिरीश कुमार खरे.

 

जीवन साथी: स्वागत सिन्हा. शिक्षा: एम.ए. (इतिहास),  बैचलर इन जर्नलिज्म.

 

व्यवसाय: पूर्व पत्रकार, वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर (इतिहास).

 

करियर यात्रा: स्नेहा  पिछले 12 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. उनकी पहचान एक तेजतर्रार लेकिन संवेदनशील रिपोर्टर की रही है. स्नेहा पहले पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी, पर सामाजिक मुद्दों पर  लिखने का शौक उन्हें पत्रकारिता में ले आया. 2005 में राज एक्सप्रेस भोपाल से पत्रकारिता की शुरूआत की. वे दैनिक जागरण, नई दुनिया और पत्रिका समाचार पत्रों में महिला एवं स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम कर चुकी हैं. स्नेहा ने 2009 से 2013 के बीच मुंबई में भी पत्रकारिता की है. इस दौरान उन्होंने नवभारत और नवभारत टाइम्स समाचार पत्रों में भी काम किया. वे न्यूज एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम लोक-परलोक की स्क्रिप्ट राइटर भी  रही हैं. स्नेहा ने 2009 में महिला स्वास्थ्य पर विकास संवाद की फैलोशिप के दौरान झाबुआ और अलीराजपुर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए दी जा रही सुविधाओं की हकीकत की पड़ताल की थी, उन्हें 2015 की विकास संवाद की फैलोशिप पर काम करने के दौरान उन्होंने बुंदेलखंड में चर्मकारों में कुपोषण की स्थिति और कारणों की पड़ताल की. स्नेहा ने महिला जनप्रतिनिधियों के ऊपर लंबे समय तक काम किया है. भोपाल में उन्होंने 2013 में पीपुल्स समाचार से अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान से आई गीता के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे किए.  स्नेहा की खबरों के आधार पर विदेश मंत्रालय ने स्नेहा को ही गीता की डीएनए जांच कराने की जिम्मेदारी सौप दी. स्नेहा तेलंगाना से आये कपल को लेकर दिल्ली पहुँची. वे सहारा समय, न्यूज एक्सप्रेस सहित कई चैनलों पर गंभीर मीडिया एक्सपर्ट के रुप में भी नजर आ चुकी हैं. दैनिक भास्कर में सीनियर रिपोर्टर के रूप में कार्यरत स्नेहा खरे का चयन मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से असिस्टेंट प्रोफेसर इतिहास के पद पर हुआ. बुंदेलखंड के एक छोटे से गांव से शुरू हुआ स्नेहा खरे का सफर अभी भी जारी है. वर्तमान में वे सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं.

 

उपलब्धियां/पुरस्कार: उन्हें अब तक लगभग डेढ़ दर्जन छोटे-बड़े अवार्ड मिल चुके हैं. इनमें प्रमुख हैं- डॉटर ऑफ भोपाल अवार्ड, निधिमेल सम्मान एवं म.प्र. सरकार द्वारा आरोग्य सुधा अवार्ड और राष्ट्रीय लाड़ली मीडिया अवार्ड (2016). इसके अलावा महिला मुद्दों पर काम करने वाली कई संस्थाएं भी उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं.

 

रुचियाँ: सभी भाषाओं के साहित्य का अध्ययन, कविता-कहानियां लिखना, संगीत सुनना.

 

अन्य जानकारी: उन्हें 2009 में महिला स्वास्थ्य पर विकास संवाद की फैलोशिप मिल चुकी है. इस फैलोशिप के दौरान स्नेहा ने झाबुआ और अलीराजपुर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए दी जा रही सुविधाओं की हकीकत की पड़ताल की थी। उन्हें 2015 की विकास संवाद की फैलोशिप भी भी मिली है. “पत्रिका” में उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में  जारी लापरवाही और भ्रष्टाचार को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए. उनकी खबरों के आधार पर कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी गयी. स्नेहा  ने इंदौर के एक संगठन  द्वारा बच्चों से भीख मंगवाने का सनसनीखेज खुलासा किया. सामाजिक मुद्दों पर लगातार काम कर रही हैं. पत्रकारिता के लिए कई राष्ट्रीय अवार्ड और फेलोशिप प्राप्त कर चुकी स्नेहा का लक्ष्य अब युवा पीढ़ी में इतिहास की सही समझ विकसित करना है. वे फिलहाल 1857 के विद्रोह पर एक रिसर्च भी कर रही हैं.स्नेहा एक लेखक ओर कवयित्री भी हैं. उनकी कविताओं में महिला अधिकारों के स्वर मुखर रहते हैं.