कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले सुनाया है। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि कोई पति या ससुराल पक्ष किसी शिक्षित और कमाने वाली महिला से घर खर्च में योगदान की उम्मीद करता है, तो इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ‘क्रूरता’ नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इस आधार पर भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के एक कर्मचारी और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज केस को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता ने ये फैसला सुनाते हुए कहा कि दांपत्य जीवन का स्वभाव ही ऐसा है जिसमें पति पत्नी दोनों से आपसी सम्मान बनाए रखने, जिम्मेदारियां साझा करने और समाज के कल्याण में योगदान की उम्मीद की जाती है। पत्नी शिक्षित और कमाने वाली महिला है। ऐसे में घरखर्च में योगदान करना, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन खरीदारी करना या सास द्वारा बच्चे को खिलाने को कहना इन सबको किसी भी तरह IPC की धारा 498A के तहत ‘क्रूरता’ नहीं कहा जा सकता। इसी तरह, संयुक्त रूप से खरीदे गए फ्लैट की ईएमआई भरना या पिता का बच्चे को बाहर ले जाना भी घरेलू जीवन की सामान्य घटनाएं हैं।
जानें पूरा मामला
बता दें कि ये मामला 2011 में हुई शादी से जुड़ा है। जीएसआई में कार्यरत महिला ने पति और ससुराल पक्ष पर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया कि उसका पति अधीर, आक्रामक, असंवेदनशील और आत्मकेंद्रित है। महिला ने यह भी कहा कि उसके पति और ससुराल वालों ने उसकी जाति और रूप-रंग को लेकर टिप्पणी की और मजाक उड़ाया। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि परिवार वाले उसे होम लोन की ईएमआई भरने के लिए मजबूर करते थे और उसके और बच्चे के लिए पर्याप्त भोजन, कपड़े और दवाइयां उपलब्ध नहीं कराते थे। इसी के चलते उसे ऑनलाइन सामान खरीदना पड़ता था।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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