बैंगलुरु। क्या बेटियों को बेटों के बराबर हक मिलना चाहिए? यह सवाल आज भी हमारे चारों तरफ गूंजता है। इसी मुद्दे पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक बड़ा बयान दिया है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वे समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) पर कानून बनाने के लिए तेजी से काम करें। कोर्ट का मानना है कि जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक महिलाओं को धर्म के आधार (basis of religion) पर अलग-अलग कानूनों का सामना करना पड़ेगा, जो कि संविधान में दी गई बराबरी के खिलाफ है।
रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस हंचटे संजीव कुमार ने एक संपत्ति विवाद के मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा, “भारत में सभी महिलाएं समान हैं। लेकिन धर्म के अनुसार व्यक्तिगत कानून महिलाओं के बीच अंतर करता है, हालांकि वे भारत की नागरिक (citizen of india) हैं। हिंदू कानून के तहत एक ‘महिला’ को जन्म से ही बेटे के समान अधिकार प्राप्त होते हैं। हिंदू कानून के तहत, एक बेटी को सभी मामलों में बेटे के समान दर्जा और अधिकार दिए जाते हैं, लेकिन इस्लामिक कानून के तहत ऐसा नहीं है।”
इस्लामिक कानून के तहत बहन को भाइयों जितना हिस्सा नहीं मिलता
जस्टिस हंचटे संजीव कुमार बेंगलुरु के सामिउल्ला खान और अन्य द्वारा संपत्ति विवाद पर दायर अपील को खारिज करते हुए यह सब कहा। दरअसल, इस मामले में शहनाज बेगम नाम की एक महिला की संपत्ति को लेकर उनके दो भाइयों और एक बहन के बीच विवाद था। कोर्ट ने बताया कि इस्लामिक कानून के तहत बहन को भाइयों जितना हिस्सा नहीं मिलता, उसे ‘अवशेष’ के तौर पर हिस्सा मिलता है, ‘हिस्सेदार’ के तौर पर नहीं। कोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून में ऐसा भेदभाव नहीं है, वहां भाई-बहन को बराबर हक मिलता है। इसलिए यह UCC की जरूरत को दिखाता है।
UCC बनने और लागू होने से महिलाओं को मिलेगा न्याय
कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC की बात कही गई है और इस पर कानून बनने से संविधान की प्रस्तावना में लिखे सपने पूरे होंगे और देश सही मायने में धर्मनिरपेक्ष बनेगा। कोर्ट ने आखिर में कहा कि UCC बनने और लागू होने से महिलाओं को निश्चित तौर पर न्याय मिलेगा और सबको बराबरी का मौका मिलेगा। हाईकोर्ट ने इस फैसले की कॉपी केंद्र और राज्य सरकारों के मुख्य कानूनी सचिवों को भेजने के लिए कहा है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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