सुप्रीम कोर्ट ने गुजाराभत्ता (alimony) को लेकर एक ऐसा अहम फैसला सुनाया है जो देशभर में लोन देने वाली संस्थाओं के लिए चिंता का सबब बन सकता है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति की पहली जिम्मेदारी उसके बच्चों और अलग हो चुकी पत्नी के भरणपोषण की है। यह जिम्मेदारी उसकी प्राथमिकता होगी, भले ही उस पर बैंक लोन की ईएमआई (EMI) चुकाने का दबाव क्यों न हो।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भूयान की बेंच ने इस संदर्भ में एक मामले की सुनवाई के दौरान फैसला सुनाया। मामला एक डायमंड फैक्ट्री के मालिक का था, जिसने अपनी आर्थिक परेशानियों का हवाला देते हुए गुजाराभत्ता देने में असमर्थता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि पति की संपत्ति पर उसकी पूर्व पत्नी और बच्चों का पहला अधिकार है, और उनकी देखभाल हर स्थिति में प्राथमिकता होनी चाहिए।
कैसे प्रभावित होंगे बैंक और लोन धारक?
इस फैसले से बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर के लिए नई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि कोई भी देनदार (borrower) पहले गुजाराभत्ता का भुगतान करेगा, उसके बाद ही वह अन्य देनदारियों जैसे बैंक लोन की ईएमआई का भुगतान कर सकेगा। अगर पति अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहता है, तो उसकी संपत्ति की नीलामी कर भी यह रकम वसूली जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार से जोड़ा है। अदालत ने कहा कि जीवन का अधिकार, सम्मान और बेहतर जीवन जीने का अधिकार तलाकशुदा महिला और बच्चों के लिए अनिवार्य है। इसलिए, इसे किसी भी अन्य वित्तीय देनदारी से ऊपर रखा गया है।
क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
यह फैसला न केवल तलाकशुदा महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करता है, बल्कि इसे मौलिक अधिकारों की श्रेणी में भी रखता है। कोर्ट ने कहा कि भरणपोषण का अधिकार (maintenance right) जीने के अधिकार का हिस्सा है और इसे किसी बैंक या लोन देने वाली संस्था के कर्ज वसूली के अधिकार से ऊपर रखा गया है। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हो गया कि भले ही कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से तंग हो, उसकी संपत्ति पर सबसे पहला हक उसके परिवार का है। अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि परिवार अदालतें ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई करें और जरूरत पड़ने पर संपत्ति की नीलामी से रकम वसूली जाए।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाज में तलाकशुदा महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसे मौलिक अधिकार से जोड़कर कोर्ट ने इसे वित्तीय जिम्मेदारियों से ऊपर रखा है। हालांकि, यह निर्णय बैंकिंग सेक्टर के लिए एक नई चुनौती भी पैदा करेगा।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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