सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में पुरुष और महिला अधिकारियों के लिए 2:1 अनुपात में आरक्षण देने की नीति को रद्द कर दिया। JAG सेना की कानूनी विंग है, जहां अधिकारी कानूनी सलाह, कोर्ट-मार्शल मामलों और सैनिकों और उनके परिवारों की कानूनी जरूरतों को देखते हैं।
दो महिला उम्मीदवारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह नीति मनमानी है और संविधान के तहत सभी को मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “सरकार केवल पुरुषों के लिए सीटें आरक्षित नहीं कर सकती। महिलाओं की सीटें सीमित करना गलत है। असली लिंग तटस्थता का मतलब है कि सबसे योग्य उम्मीदवार चुने जाएं।”
दरअसल, दो महिला उम्मीदवार मेरिट लिस्ट में 4वें और 5वें नंबर पर थीं, लेकिन महिलाओं के लिए केवल 3 सीटें होने के कारण उन्हें मौका नहीं मिला। जबकि उनसे कम अंक वाले पुरुष उम्मीदवार चुने गए। वहीं, कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता को तुरंत सेवा में शामिल करने का आदेश दिया गया, जबकि दूसरी को राहत नहीं मिली क्योंकि उसने याचिका के दौरान ही नौसेना जॉइन कर ली थी।
भरपाई के लिए महिलाओं के लिए कम से कम 50% सीटें रिजर्व करें
JAG में कुल 9 पदों में भर्ती होनी थी, इसमें 2:1 अनुपात में आरक्षण के आधार पर 6 पुरुषों और 3 महिलाओं का चयन किया गया। इस पर जस्टिस मनमोहन और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि पिछले सालों में महिलाओं को कम मौके मिलने की भरपाई के लिए कम से कम 50% सीटें महिलाओं को दी जाएं, लेकिन अगर महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मेरिट में हैं तो उन्हें 50% तक ही सीमित करना भी गलत होगा।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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