सुप्रीम कोर्ट ने देश में महिलाओं की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के संबंध में लोगों की मानसिकता बदलनी होगी। कोर्ट ने लोगों से अपील की कि महिलाओं को अकेला छोड़ दें और उन्हें आगे बढ़ने दें। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने लड़कियों और महिलाओं के लिए देश को सुरक्षित और बेहतर स्थान बनाने की अपील की। पीठ ने कहा, हम बस यही अनुरोध करते हैं कि महिलाओं को अकेला छोड़ दिया जाए। हमें उनके इर्द-गिर्द हेलिकॉप्टर नहीं चाहिए, उन पर निगरानी नहीं रखनी चाहिए, उन पर रोक नहीं लगानी चाहिए। उन्हें बढ़ने दें, यही इस देश की महिलाएं चाहती हैं।
पीठ ने कहा कि उसने वास्तविक जीवन में ऐसे मामले देखे हैं, जिनमें खुले में शौच के लिए जाने वाली महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न किया जाता है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, गांव में स्वच्छ भारत अभियान के कारण कुछ विकास हुआ है, लेकिन अभी भी (कई जगहों पर) शौचालय और बाथरूम नहीं हैं। जिन महिलाओं को शौच के लिए जाना होता है, उन्हें शाम तक इंतजार करना पड़ता है। युवा महिलाओं को भी शाम तक शौच के लिए इंतजार करना पड़ता है क्योंकि वे दिन में खुले में नहीं जा सकतीं। हमने ऐसे मामले देखे हैं।
महिलाओं के लिए दोगुना जोखिम
पीठ ने कहा कि जोखिम दोगुना है, क्योंकि पहला, महिलाएं पूरे दिन खुद को सहज नहीं कर सकतीं और इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और दूसरा, क्योंकि वे शाम को बाहर जाती हैं और जाते या लौटते समय उन्हें यौन उत्पीड़न का खतरा रहता है। शीर्ष न्यायालय ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुआयामी जागरूकता अभियान की आवश्यकता पर बल दिया। पीठ वकील आबाद हर्षद पोंडा की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मूल्य आधारित शिक्षा और जन जागरूकता पहल के माध्यम से लिंग आधारित हिंसा, विशेषकर यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म से संबंधित मुद्दों को उठाने की बात कही गई थी।
महिलाओं की कमजोरी पुरुष नहीं समझ सकते
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, चाहे शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र, महिलाओं की कमजोरी ऐसी चीज है जिसे पुरुष कभी नहीं समझ पाएंगे। एक महिला जब सड़क, बस या रेलवे स्टेशन पर कदम रखती है तो उसे जो एहसास होता है, वह अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के निरंतर बोझ के साथ-साथ एक अतिरिक्त मानसिक बोझ है जिसे वह घर, काम और समाज में अपनी जिम्मेदारियों के साथ उठाती है। हर नागरिक को सुरक्षित रहना चाहिए लेकिन यह एक अतिरिक्त बोझ है जिसे महिला को उठाना पड़ता है। महिलाओं के लिए हर जगह खतरा है। मानसिकता बदलनी होगी।
नैतिक शिक्षा पर केंद्र से मांगा हलफनामा
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत नैतिक शिक्षा और लैंगिक संवेदनशीलता से संबंधित विस्तृत पाठ्यक्रम और शैक्षिक मॉड्यूल अभी तक दायर नहीं किए गए हैं। इस पर पीठ ने कहा कि शैक्षणिक वर्ष पहले ही शुरू हो चुका है और मामले को अनिश्चित काल
तक टाला नहीं जा सकता। इसके बाद शीर्ष अदालत ने केंद्र को मौजूदा मॉड्यूल और उसके की तरफ से उठाए जाने वाले प्रस्तावित कदमों के बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया और मामले की सुनवाई 6 मई को तय की है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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