सिवनी। अगर सपनों को पूरा करने की चाहत हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की रहनी चाली 100 से अधिक महिलाएं सुंदर कलाकृतियां गढ़कर अपने सपनों को साकार कर रहीं हैं। घर गृहस्थी और चूल्हा-चौका में उलझी रहने वाली अशिक्षित महिलाएं भी बांस सामग्री से कलात्मक वस्तुएं बना रही है और बाजार तक पहुंचा रही है।
मध्य प्रदेश के जनपद सिवनी में आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की सुंदर कलाकृतियां बांस से गढ़कर 100 से अधिक महिलाएं अपने सपनों को साकार करने में जुटी हैं।
घर गृहस्थी और चूल्हा-चौका में उलझी रहने वाली अशिक्षित महिलाएं भी बांस सामग्री बनाने में निपुण निशा ठाकुर से प्रेरित होकर अब कलात्मक वस्तुएं बना रही हैं, साथ ही उनकी मार्केटिंग और विक्रय करने में भी आगे आ रही हैं। समूह के रूप में कार्य कर रही महिलाओं ने स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत तो किया ही है। अब उनके जीवन स्तर में भी परिवर्तन दिखने लगा है। बांस के इन्हीं पंखों को गढ़कर अब ये महिलाएं आसमान में ऊंची उड़ान भर रही हैं। बांस से निर्मित कलाकृतियों की मांग मध्य प्रदेश के अलावा कई राज्यों में है। यह कलाकृतियां लोगों के मन को भा रही हैं।
इस व्यवसाय ने न केवल निशा ठाकुर बल्कि उनके समूह की अन्य महिलाओं को भी नई पहचान और सम्मान दिलाया है। पहले जहाँ ये महिलाएँ आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं, वहीं अब ये आत्मनिर्भर होकर अपना और अपने परिवार का भविष्य सुधार रही हैं।
प्रशिक्षक निशा बताती हैं कि बांस की यह प्रतिभा केवल एक क्षेत्र में सीमित ना रहे इसलिए सुदूर बसी महिलाओं तक इस कला को पहुंचाने के लिए मध्य प्रदेश आजीविका मिशन के माध्यम से सिवनी समेत पड़ोसी जिले मंडला, जबलपुर सहित कई जिलों में लगातार महिलाओं को बांस की सुंदर कलाकृतियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक महिलाएं इसका लाभ उठाकर स्वयं को आत्मनिर्भर बना सकें। बीते तीन-चार सालों में 100 से अधिक महिलाओं ने बांस की कारीगरी सीख ली है। विभिन्न स्कूलों में जाकर भी विद्यार्थियों को इस कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
ऋण लेकर सामग्री बनाना प्रारंभ किया
मध्यप्रदेश के सिवनी मुख्यालय से लगे छिड़िया पलारी में महिला आजीविका समूह बनाकर बांस की आकर्षक कलाकृतियां बनाने वाली निशा ठाकुर ने बताया कि समूह बनाने से पहले पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति के कंधे पर थी। उन्होंने महिला समूह का लाभ समझा और निर्मल स्व-सहायता से जुड़ गई तथा पति के साथ बांस से कलाकृति बनाने के कार्य को आगे बढ़ाया।
प्रशिक्षण, औजारों तथा सामग्री के लिए एक लाख रुपये का ऋण लेकर कार्य प्रारंभ किया है। इसमें अन्य महिलाओं को जोड़ा गया। समूह की महिलाओं द्वारा मिल-जुलकर बांस में उकेरी गई सुंदर कलाकृतियों की अब काफी मांग है। समय-समय पर आजीविका मिशन द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों व मेलों में सबसे अधिक इनके निर्मित कलाकृतियों का ही विक्रय होता है। एक प्रदर्शनी में एक से डेढ़ लाख रुपये की सामग्री आसानी से बिक जाती है। इसका लाभ समूह की महिलाओं को दिया जाता है।
प्रतिमाह पांच हजार रुपये तक की अतिरिक्त आय
समूह में चार सालों से जुड़ी रजनसरी और वर्षा चौधरी ने बताया कि बांस से कलाकृतियों को बनाना बहुत ही बारीक काम है। प्रशिक्षण के बाद समूह की 15 से 20 महिलाओं ने बांस की सामग्री बनाना सीखा है। सामग्री बनाने से प्रत्येक महिला को महीने में 4 से 5 हजार रुपये की अतिरिक्त आय प्राप्त हो जाती है। गृह शोभा की कलाकृतियों में चिड़िया, मोर, कबूतर, बुगला, मछली, हिरण, तोता-मैना का जोड़ा सहित विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को तैयार किया जाता है। जबकि बांस से निर्मित दैनिक उपयोगी वस्तुओं में मोबाइल स्टैंड, बेम्बू ट्रे, कप, की रिंग, हेंगर, लैंप, पेन होल्डर आदि बनाए जाते हैं।
सशक्त और प्रतिभावान बन रही महिलाएं
मध्य प्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, सिवनी के प्रभारी जिला परियोजना प्रबंधक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला बताते हैं कि गृह शोभा, दैनिक कार्यों में उपयोगी बांस की सुंदर कलाकृतियां बनाकर छिड़िया पलारी गांव में समूह महिलाएं स्वयं को आत्मनिर्भर और सशक्त बना रही हैं। महिलाओं द्वारा तैयार कलात्मक सामग्री की सिवनी समेत राज्य के अन्य जिलों में खासी मांग है। आजीविका मिशन के इस कार्य का लाभ ज्यादा महिलाओं को मिले इसका प्रयास निरंतर जारी है। आजीविका समूह की अन्य गतिविधियों में जुड़ने से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के जीवन स्तर में बड़ा बदलाव आ रहा है।
सन्दर्भ स्रोत : दैनिक जागरण समाचार पत्र
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