केरल हाईकोर्ट : इस्लाम में बहुविवाह तभी मान्य,

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केरल हाईकोर्ट : इस्लाम में बहुविवाह तभी मान्य,
जब पत्नियों के बीच न्याय कर सके पति

केरल हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है कि इस्लाम में बहु विवाह (एक से अधिक विवाह) को केवल उसी स्थिति में इजाजत है, जब पुरुष अपनी सभी पत्नियों के साथ समान न्याय कर सके। केरल हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक रिविजन ( पुनरीक्षण) याचिका का निपटारा करते हुए की। यह याचिका फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें एक पत्नी द्वारा अपने पति से 10,000 मासिक भरण-पोषण की मांग को खारिज कर दिया गया था। पति नेत्रहीन है और भीख तथा पड़ोसियों की सहायता पर निर्भर रहता है। याचिकाकर्ता पत्नी का आरोप था कि उसका पति, पहले से दो शादियां होने के बावजूद, तीसरी शादी करने की धमकी दे रहा है। 

आर्थिक अक्षमता ऐसी शादियों को बना देती है अमान्य 

अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बहु विवाह की अनुमति केवल इस शर्त पर देता है कि पति कई पत्नियों का भरण-पोषण कर सके लेकिन आर्थिक अक्षमता ऐसी शादियों को अमान्य बना देती है। कुरान (सूरा 4, आयत 3 और 129) का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि इस्लामी कानून की मूल भावना एक पत्नी प्रथा (मोनोगैमी) है, और बहु विवाह केवल अपवाद है, वह भी तभी इजाजत है जब न्याय और क्षमता मौजूद हो। अदालत ने कहा कि इन आयतों की भावना और मंशा एक पत्नी प्रथा है। बहु विवाह केवल अपवाद है। कुरान 'न्याय' पर विशेष बल देता है। यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी पत्नी के साथ न्याय कर सके, तभी उसे एक से अधिक विवाह की अनुमति है।

यही पवित्र कुरान की सच्ची भावना भी है 

मुस्लिम समुदाय का बहुसंख्यक हिस्सा एक पत्नी प्रथा का पालन करता है, चाहे उनके पास कई पत्नियों का पालन-पोषण करने की आर्थिक क्षमता हो। यही पवित्र कुरान की सच्ची भावना भी है। अदालत ने यह भी कहा कि मुस्लिम समुदाय का वह छोटा हिस्सा जो कुरान की आयतों को भूलकर बहु विवाह का पालन करता है, उसे धार्मिक नेताओं और समाज द्वारा शिक्षित किया जाना चाहिए। 

'रीति-रिवाजों के सिद्धांत लोगों को बताएं'

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि राज्य का कर्तव्य है कि मुस्लिम रीति-रिवाजों के मूल सिद्धांतों पर लोगो को परामर्श दे। यदि कोई नेत्रहीन व्यक्ति, जो मस्जिद के सामने भीख मांगता है और जिसे मुस्लिम रीति-रिवाजों के मूल सिद्धांतों की जानकारी नहीं है, एक के बाद एक मैरिज कर रहा है, तो राज्य का दायित्व है कि उसे उचित परामर्श दिया जाए। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि राज्य का दायित्व है कि वह उन परित्यक्त पत्नियों की रक्षा करे, जो मुस्लिम समुदाय में बहु विवाह की शिकार बनती है। 

राज्य बहु विवाह की शिकार महिलाओं की रक्षा करे 

अदालत ने सरकार के संबंधित विभाग को निर्देश दिया कि पति को सक्षम परामर्शदाताओं (जिसमे धार्मिक नेता भी शामिल हो) के माध्यम से परामर्श दिया जाए ताकि वह पुनः विवाह न करे और किसी और महिला को परित्यक्त न छोड़े। अदालत ने यह भी कहा कि अगर संभव हो तो राज्य को याचिकाकर्ता पत्नी और पति को फिर से मिलाने की कोशिश करनी चाहिए। आखिर में अदालत ने पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। 

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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