छाया : मंगला जी के फेसबुक अकाउंट से
झाबुआ। अपनी संस्कृति और भाषा से दूर होते युवाओं को जागरूक करने की पहल करते हुए झाबुआ की एक आदिवासी शिक्षिका भीली भाषा और संस्कृति को सहेजने के प्रयासों में लगी है। उनके द्वारा अब तक अलग-अलग तीन किताबें लिखी जा चुकी हैं।झाबुआ के कन्या उमावि में पदस्थ मंगला भीली जीवन शोध ग्रन्थ की जीती जागती मिसाल हैं। वे न केवल अपनी मातृभाषा को बचाने में लगीं हैं, बल्कि उनके द्वारा अपनी किताबों में भीली भाषा की पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही लोकोक्तियाँ, कहावतें और पहेलियां भी शामिल की गई हैं। मंगला गरवाल को आदिम जाति कल्याण विभाग भोपाल द्वारा आदिम जाति भाषा, बोली, सिलेबस पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए राज्य स्तरीय कार्य योजना समिति की सदस्य सचिव भी नियुक्त किया गया है।
मंगला कहती हैं मातृभाषा किसी भी व्यक्ति को अपने परिवार, संस्कृति और सभ्यता को जोड़े रखने का सबसे सशक्त माध्यम होती है। यह हमारी पहचान को भी कायम रखती है, वे कहती हैं वर्तमान में युवा पीढ़ी अपनी भाषा और संस्कृति से दूर होती जा रही है ऐसे में जरूरी है की हम उन्हें इससे जोड़े रखें, नहीं तो आधुनिकता की अंधी दौड़ में नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा ही भूल जायेगी।
सन्दर्भ स्रोत : पत्रिका
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