भोपाल। कोई चित्रकारी में, कोई अभिनय में तो कोई शिक्षा के क्षेत्र में, शहर की युवतियाँ हर क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं। हाल ही में अलग-अलग क्षेत्र की शहर की तीन युवतियों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की। इनकी कहानी सभी के लिए प्रेरणास्पद है।
रंगों में कई राग, यह बताते हैं शिवानी के कोलाज
जे स्कूल ऑफ आर्ट्स मुंबई से प्रशिक्षित शिवानी के चित्रों में मानव मन के उन कोनों की तलाश दिखाई देती है, जो आमतौर पर अनदेखी रह जाती है। वे मन के उन कोनों में दाखिल होने का प्रयास करती हैं, जहां या तो स्याह अंधेरा होता या फिर उजाले की हल्की सी किरण। नई दिल्ली में आयोजित इंडिया आर्ट आर्किटेक्चर एंड डिजाइन बिनाले में भोपाल की शिवानी दुबे के चित्रों को खासी सराहना मिली। शिवानी का मानना है कि अक्सर लोग खुद को जैसा दिखाते हैं, वैसे होते नहीं हैं। उनके मन में कोई उथल-पुथल चल रही होती है तथा विचार व व्यवहार में निरंतर बदल रहा होता है, इसलिए चेहरों के जरिए उनके मन में उतरने की यात्रा मुझे रोमांचित करती है। खास बात यह है कि शिवानी के चित्रों में विरासत तथा उनके अवशेषों का भी रंग उभरता है। शिवानी की चित्र प्रदर्शनी अनेक शहरों में लग रही है।
शोखी को बनारस में मिले दो स्वर्ण पदक
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का 103 वां दीक्षांत समारोह में मनोविज्ञान विभाग की छात्रा, भोपाल के कोलार इलाके की निवासी शोखी श्रीवास्तव को स्नातक वर्ग में विश्वविद्यालय में सर्वाधिक अंक प्राप्त करते हुए प्रथम स्थान प्राप्त करने के उपलक्ष्य में दो स्वर्ण पदकों से सम्मानित किया गया। पहला पदक एवं प्रशस्ति पत्र बीएचयू प्रशासन की तरफ से एवं दूसरा बीएचयू का ही पूनम मेमोरियल स्वर्ण पदक सर्वाधिक सीजीपीए के लिए प्रदान किया गया। उनके माता-पिता भी बीएचयू के विद्यार्थी रहे हैं।
अम्मानी- गरीबी में गुजरा बचपन, आज अभिनय में कमा रहीं नाम
भोपाल की अम्मानी पिछले चार सालों से अभिनय के क्षेत्र में हैं। अभी एक डरावनी फ़िल्म में उनकी मुख्य भूमिका है। इससे पहले वे वेब सीरिज महारानी 2 और मिस्टर सक्सेना के साथ दक्षिण भारत के दो प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुकी हैं। सरकार के लिए कई विज्ञापन फ़िल्में कर चुकी अम्मानी ने बताया कि 4 साल पहले सहेली के साथ विज्ञापन फिल्म की शूटिंग देखने गई थीं, वहां से डायरेक्टर ने मुझे एक सिचुएशन पर अभिनय करने को कहा, तो मैंने कर दिया। दो दिन बाद सूचना मिली कि मेरा चयन हो गया है और तभी से अभिनय यात्रा शुरू हुई। अम्मानी का बचपन बहुत ही मुश्किलों भरा रहा। उनकी मां (बसंता आरुमुगम) ने दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा कर घर चलाया। अम्मानी बताती हैं, मैंने उस वक्त मन में ठान लिया था कि बड़ी होकर अपनी खुद की पहचान बनाऊंगी और अभावों में रहने वाले लोगों की मदद करूंगी। वे बताती हैं, मेरे घरवालों - खासतौर पर पति का हमेशा मुझे समर्थन मिला।
सन्दर्भ स्रोत: पत्रिका
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