दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में शादी को रद्द करते हुए कहा कि पति द्वारा मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर गलत जानकारी देना धोखाधड़ी है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने माना कि पहली शादी छुपाना और आय को बढ़ा-चढ़ाकर बताना, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(c) के तहत धोखाधड़ी है।
फैसला सुनाते हुए, न्यायाधीशों ने पति द्वारा अपनी पत्नी के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। पारिवारिक न्यायालय ने पहले यह कहते हुए विवाह को रद्द कर दिया था कि प्रतिवादी की सहमति झूठे प्रतिनिधित्व के माध्यम से प्राप्त की गई थी।
मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर झूठे दावे
विवाद तब शुरू हुआ जब पति की शादी डॉट कॉम प्रोफाइल में लिखा था कि वह “कभी शादीशुदा नहीं” रहा और उसकी आय प्रति वर्ष 200,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है। लेकिन रिकॉर्ड से पता चला कि वह पहले शादीशुदा था, उसकी पिछली शादी से एक बच्चा भी था और आय दावे से काफी कम थी।
अदालत ने कहा "कभी शादीशुदा नहीं" आजीवन स्थिति का स्पष्ट ऐलान है। इसे "अविवाहित" मानना गलत और भ्रामक है। न्यायालय ने यह भी माना कि वित्तीय धोखाधड़ी उतनी ही गंभीर है। पहले दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि वेतन को बढ़ा-चढ़ाकर बताना भी धोखाधड़ी है, खासकर तब जब आय विवाह का अहम आधार हो।
पति ने कहा कि प्रोफाइल उसके माता-पिता ने बनाई थी और उसने शुरुआती मुलाकात में अपनी पहली शादी की जानकारी दे दी थी। उसने यह भी दलील दी कि पत्नी ने देरी से मामला दायर किया। अदालत ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा, "विवाह इतिहास छुपाना कोई छोटी बात नहीं, बल्कि विवाह की जड़ को प्रभावित करने वाला तथ्य है। इसका छुपाना स्वतंत्र और सूचित सहमति को खत्म कर देता है।"
आय को लेकर अदालत ने कहा कि शादी के लिए सही जानकारी देना जरूरी है। पत्नी, जो कि उच्च शिक्षित और आत्मनिर्भर थी, को सही तथ्य जानने का पूरा अधिकार था। अदालत ने यह भी कहा कि ऑनलाइन मैट्रिमोनियल प्लेटफॉर्म पर तलाकशुदा विकल्प मौजूद था, फिर भी पति ने कभी शादीशुदा नहीं चुना। इसके अलावा पिछली शादी से बच्चा होना भी महत्वपूर्ण तथ्य था, जिसे किसी भी भावी जीवनसाथी को बताना आवश्यक था।
अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट का फैसला सही था और इसमें दखल की जरूरत नहीं।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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