पति-पत्नी के बीच तीसरा यानी वो अब छिप नहीं सकेगा। दोनों में से किसी ने भी बेवफाई की तो डाटा फिल्टरेशन और कॉल डिटेल से सब पता चल जाएगा। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि वैवाहिक विवादों के आरोपों की जांच के लिए अदालतें पति-पत्नी और कथित प्रेमी-प्रेमिका के मोबाइल कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) और टावर लोकेशन डेटा मंगवा सकती हैं। हालांकि, गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए इसे सीलबंद लिफाफे में प्राप्त किया जाए।
निजता में सीमित दखल जायज
कोर्ट का यह फैसला एक अपील पर आया है, जिसमें कथित प्रेमी-प्रेमिका ने पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके और पीड़ित पत्नी के पति के मोबाइल डेटा मंगवाने का निर्देश दिया गया था। अपीलकर्ता ने दलील दी कि यह आदेश निजता के अधिकार का उल्लंघन है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह निर्देश जनवरी, 2020 से सीमित अवधि के लिए है और यह आरोपों से सीधे जुड़ा है। कोर्ट ने 2003 के शारदा बनाम धर्मपाल मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सत्य तक पहुंचने के लिए निजता में सीमित दखल जायज है।
डेटा संग्रह वैध उद्देश्य के लिए होना चाहिए
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि सीपीसी की धारा 151 और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 14 अदालतों को सत्य का पता लगाने के लिए लचीली प्रक्रियाएं अपनाने की शक्ति देता है। साथ ही, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत अदालतें प्रासंगिक तथ्यों के लिए कोई भी कदम उठा सकती हैं। अदालत ने कहा कि टेलीकॉम ऑपरेटरों के रिकॉर्ड तटस्थ और व्यावसायिक होते हैं, जो निजी संचार की सामग्री को उजागर किए बिना पुष्टिकारी साक्ष्य दे सकते हैं। फिर भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने जोर दिया कि डेटा संग्रह आनुपातिक और वैध उद्देश्य के लिए होना चाहिए।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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