दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों को लेकर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी महिला के साथ उसके पति के परिवार के सदस्य यौन शोषण करते हैं तो यह भी भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत क्रूरता मानी जाएगी। ऐसे मामलों में अलग-अलग मुकदमे चलाने की जरूरत नहीं है बल्कि एक ही ट्रायल में सभी आरोपों की सुनवाई हो सकती है।
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस अमित महाजन ने स्पष्ट किया कि यदि पत्नी अपने ससुराल पक्ष के लोगों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाती है तो इसे शारीरिक और मानसिक क्रूरता का गंभीर रूप माना जाएगा। कोर्ट के मुताबिक इस तरह के कृत्य महिला को गहरे मानसिक आघात देते हैं, जो लंबे समय तक बने रहते हैं।
ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनोती
दरअसल, यह मामला एक महिला की उस याचिका से जुड़ा था जिसमें उसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थीजिसमें उसके ससुर और देवर को रेप के आरोप से यह कहते हुए मुक्त कर दिया गया था कि घटना हरियाणा में हुई थी और दिल्ली की अदालत के पास क्षेत्राधिकार नहीं है।
एक साथ की जा सकती है ऐसे मामलों में सुनवाई
ट्रायल कोर्ट ने राज्य को यह छूट दी थी कि वह उचित अदालत में केस चलाए। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि महिला द्वारा लगाए गए रेप और क्रूरता के आरोप सीआरपीसी की धारा 220 के तहत एक ही लेन-देन का हिस्सा हैं। इसका मतलब यह है कि जब अलग-अलग अपराध आपस में जुड़े हों और एक ही घटना श्रृंखला का हिस्सा हों तो उनकी एक साथ सुनवाई की जा सकती है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 184 और 220 को साथ पढ़ने पर साफ होता है कि ऐसे मामलों में कोई भी सक्षम अदालत इन अपराधों की सुनवाई कर सकती है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट के पास रेप के आरोपों की सुनवाई का भी अधिकार था। वही दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को दोबारा विचार के लिए ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया।



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