हिमाचल हाईकोर्ट : शादी का झूठा वादा और

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हिमाचल हाईकोर्ट : शादी का झूठा वादा और
बार-बार टालना बलात्कार का आधार नहीं

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने रेप केस में बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को बदलते हुए कहा कि यदि दो व्यक्ति लंबे समय तक रिश्ते में रहते हैं, तो यह मान लेना कठिन होता है कि उनका यौन संबंध केवल शादी के वादे पर आधारित था। यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने उस मामले में की, जहां पांच साल से संबंध में रह रही महिला ने अपने साथी पर बलात्कार का आरोप लगाया था। नाहन की फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को पलटते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला यह साबित करने में असफल रही कि आरोपी पुरुष ने उससे विवाह करने से इनकार किया था, खासकर जब दोनों ने स्वेच्छा से लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए थे। 

न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पांच वर्षों तक चले संबंध को केवल शादी के वादे पर आधारित यौन संबंध मानना कठिन होगा। अतः ट्रायल कोर्ट का आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n) (बलात्कार) के तहत आरोप तय करना उचित नहीं था। हाईकोर्ट ने आरोपी की उस अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने सिरमौर जिले की नाहन फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा उसके खिलाफ बलात्कार और धोखाधड़ी के आरोप तय करने को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि शिकायतकर्ता महिला की एफआईआर में ऐसा कोई स्पष्ट आरोप नहीं था कि आरोपी ने शादी से इनकार किया था।

जानें पूरा मामला 

शिकायत के अनुसार, दोनों की शादी 2014 में तय हुई थी, लेकिन यह कई बार टली और आखिरकार 2021 में महिला ने यह आरोप लगाया कि आरोपी के परिवार ने दहेज की मांग की थी, जिसके चलते विवाह नहीं हो पाया। लेकिन अदालत ने यह भी देखा कि गवाहों के बयानों से यह साबित नहीं होता कि दहेज की मांग स्वयं पुरुष ने की थी। इस कारण दहेज निषेध अधिनियम के तहत लगाए गए आरोप भी सही नहीं थे। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई महिला सभी संभावित परिणामों को जानने के बाद भी सहमति देती है, तो यह उसकी जानबूझकर दी गई सहमति मानी जाएगी।

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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