भोपाल। एम्स भोपाल की पैथोलाजी और प्रयोगशाला चिकित्सा विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. तान्या ने अमेरिका के बोस्टन शहर में आयोजित प्रतिष्ठित यूनाइटेड स्टेट्स एंड कैनेडियन एकेडमी आफ पैथोलाजी की 114वीं वार्षिक बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए किडनी रोग से जुड़े एक महत्वपूर्ण शोध को प्रस्तुत कर न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान के सामर्थ्य को भी दर्शाया।
मरीजों के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव
डॉ. तान्या बताती है कि उनकी इस रिसर्च का मुख्य उद्देश्य बीमारी की पहचान की प्रक्रिया को और अधिक कारगर बनाना था। अब डॉक्टरों के पास एक ऐसा नया हथियार होगा, जिससे वे यह जान पाएंगे कि किस मरीज को किस प्रकार का व्यक्तिगत इलाज देना है। इस नई जानकारी से इलाज की सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी, जिससे किडनी रोग से जूझ रहे हजारों मरीजों को बेहतर और स्वस्थ जीवन जीने की उम्मीद मिलेगी।
एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. डा. अजय सिंह ने डा. तान्या शर्मा की इस उपलब्धि पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि यह शोध संस्थान की उच्च अकादमिक गुणवत्ता और नवाचार के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता का जीता जागता उदाहरण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि डॉ. तान्या की यह सफलता न केवल देश के लिए गौरव की बात है. बल्कि यह मरीजों के इलाज में भी एक महत्वपूर्ण और कारगर कदम साबित होगा।
डॉ. तान्या शर्मा का यह शोध भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा सम्मत है और मेम्ब्रेनस नेफ्रोपैथी नामक एक गंभीर किडनी रोग पर केन्द्रित है। यह रोग नेफ्रोटिक सिंड्रोम से जुड़ा हुआ है, यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर से प्रोटीन पेशाब के रास्ते बाहर निकलने लगता है। इससे शरीर में सूजन आ जाती है और किडनी के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है। मध्य भारत के मरीजों पर केंद्रित इस गहन शोध में डॉ. तान्या ने एक नए एंटीजन की पहचान की है। एंटीजन एक ऐसा अणु होता है जो शरीर में बीमारी का संकेत देता है।
सन्दर्भ स्रोत : नवदुनिया
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