छाया: NO भिक्षा के एफ़ बी पेज से
• अब तक 1578 भिक्षुकों का करवा चुकी हैं पुनर्वास
इंदौर। इंदौर से भिक्षावृत्ति को पूरी तरह समाप्त करने जब जिला प्रशासन नाकाम रहा, तब शहर की एक महिला रूपाली जैन ने शहर को भिक्षुक मुक्त बनाने की चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि भीख मांगना छुड़वाकर उन्हें समझाइश देकर रोजगार का प्रशिक्षण भी दिलवाया। उज्जैन में संपन्न परिवार में जन्मीं रूपाली ने इंदौर से सॉफ्टवेयर इंजीनियर की डिग्री हासिल की है। वे बताती हैं ‘वर्ष 2000 में शादी हो गई और 2001 से जॉब शुरू की। भारत की प्रतिष्ठित कंपनियों में प्रोजेक्ट मैनेजर की हैसियत से कार्य करने के बाद लंदन, कनाडा और अमेरिका में भी काम किया। रूपाली ने अमेरिका से नौकरी छोड़कर इंदौर लौट कर सिर्फ मानव सेवा को अपने जीने का मक़सद बना लिया।
रूपाली नगर निगम के सहयोग से शहर भिक्षुक मुक्त बनाने का काम कर रही है। रूपाली अपनी टीम के साथ मंदिर, फुटपाथ, रेलवे व बस स्टैंड के बाहर, ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने वालों को रेस्क्यू कर समझा-बुझाकर सही राह दिखा रही हैं। इस काम के लिए वे मुख्यमंत्री हाथों सम्मानित भी हो चुकी हैं। भिक्षुकों को समझाना और भीख मांगना छुड़वाना कठिन है। रेस्क्यू के दौरान कई बार भिक्षुकों के हमले से टीम के लोग घायल भी हो चुके हैं, फिर भी वे पूर्ण निष्ठा के साथ इस कार्य को करने के लिए तत्पर हैं।
निराश्रित और भिक्षुकों के पुनर्वास के लिए काम कर रही रूपाली अब तक शहर के 1578 भिक्षुकों का पुनर्वास करवा चुकी हैं। सबसे ज्यादा चुनौती साल 2020-21 में आई थी, जब कोरोना के कारण बांग्लादेश और नेपाल से भी कई लोग यहां आ गए थे। इसके अलावा यूपी, बिहार, बंगाल सहित कई अन्य प्रदेश के भिक्षुकों का भी पुनर्वास कराया है।
15 साल बाद मां-बेटे को मिलाया
नूरी बाई उर्फ रिजवाना अंसारी जब हाथीपाला क्षेत्र से मिलीं, तब उनकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इनका इलाज कराया और काउंसलिंग की। वे जयपुर में घर का पता बताया करती थीं। पुलिस की मदद से उनके बेटे से संपर्क किया। बेटा सूरत में नौकरी कर रहा था। इस तरह 15 साल बाद मां-बेटे को एक-दूसरे से मिलवाया।
महिलाओं का सशक्तिकरण
संस्था 200 से ज्यादा 6 से 15 साल तक के बच्चों को भिक्षावृत्ति से मुक्त करा चुकी है। इनमें कई बच्चे ऐसे भी थे, जो नशे की गिरफ्त में थे। अब ये सभी बच्चे पढ़ रहे हैं। संस्था भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने के अलावा महिला सशक्तिकरण पर भी कार्य करती है। संस्था अब तक 16 हजार से अधिक महिलाओं का सशक्तिकरण करवा चुकी है। उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी है। अब कई महिलाएं खुद का रोजगार चला रही हैं।
बेटी बन बुजुर्गों को दी मुखाग्नि
2021 में भिक्षुक मुक्त इंदौर के लिए पायलट प्रोजेक्ट नगर निगम के साथ मिलकर शुरू किया। इसके तहत भिक्षुक पुनर्वास केंद्र परदेशीपुरा में शुरू किया। मार्च 2022 में केंद्र के एक बुजुर्ग भिक्षुक का इलाज के दौरान निधन हो गया। अस्पताल ने जब लाश ले जाने की बात कही तो रूपाली को समझ ही नहीं आया कि इस लाश का क्या करें। नगर निगम अधिकारियों से संपर्क किया तो वहां से निराशा हाथ लगी। उन्होंने ऐसी संस्थाओं को तलाश किया जो लावारिसों की अंत्येष्टि कराती हों। पता चला कि वे भी पैसे मांग रही हैं। तब उन्होंने तय किया कि इनका अंतिम संस्कार वे खुद करेंगी। जब चेतराम के अंतिम संस्कार के लिए वे अपनी टीम के साथ जूनी इंदौर मुक्ति धाम पहुंची, उस समय वहां किसी और की अंत्येष्टि हो रही थी। महिला को मुक्ति धाम में खड़ा देख लोगों ने रोका और कहा कि आप मुखाग्नि नहीं दे सकतीं। लोगों के विरोध करने और समझाने बावजूद वे मुखाग्नि देकर ही मानीं। इस घटना के बाद उन्होंने प्रण किया कि अब केंद्र के जिस भी भिक्षुक का निधन होगा, यदि उनका परिवार नहीं है तो उनका अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान के साथ अपने हाथों से करेंगी। वे अब तक 16 से अधिक भिक्षुकों को मुखाग्नि दे चुकी हैं।
संदर्भ स्रोत : दैनिक भास्कर
संपादन: मीडियाटिक डेस्क
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