स्वाति उखले

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स्वाति उखले

swatiukhale326@gmail.com

2024-02-26 08:20:55

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जन्म दिनांक: 16 जनवरी, जन्म स्थान: इंदौर.

 

माता: श्रीमती शैलबाला सेन, पिता: श्री प्रेम कुमार सेन.

 

जीवन साथी: श्री सुदीप उखले. संतान: पुत्र -01, पुत्री -01.

 

शिक्षा: एम.म्यूज, सुगम संगीत सीनियर डिप्लोमा.

 

व्यवसाय: ‘माच’ कलाकार (‘माच कला’ मालवा इलाके की खास पहचान रही है. यह दर्शकों को किसी नाटक के मंचन का अहसास कराती है क्योंकि इसमें गायन, नृत्य और अभिनय का समावेश होता है), अध्यक्ष - श्री सिद्ध लोक कृति सांस्कृतिक संस्था.

 

 करियर यात्रा: 5 वर्ष की उम्र से ही अपने दादाजी स्व. श्री सिद्धेश्वर जी सेन के साथ मालवी, लोकगीत, लोक नृत्य एवं लोकनाट्य की शिक्षा प्राप्त कर सम्पूर्ण भारत वर्ष में मंच प्रदर्शन निरंतर जारी. उन्हें इस विधा में काम करते हुए लगभग 40 वर्ष हो गये हैं और प्रदेश और देश के अलग-अलग हिस्सों में अनेकों प्रस्तुतियां दे चुकी हैं. वर्तमान में स्वाति बालिकाओं को ‘माच कला’ के तहत नि:शुल्क नृत्य, गायन तथा मालवा की मटकी लोक नृत्य, पनिहारी लोक नृत्य और फूलपाती पर आधारित लोकगीत सिखाती हैं.

 

उपलब्धियां/सम्मान 

• मध्यप्रदेश राज्य शासन द्वारा ‘श्रुति’ श्रृंखला के अन्तर्गत बेटी के जन्म से लेकर विदाई तक मालवी लोक गायन की सीडी जारी.

• आठ लोक नृत्यों में अभिनय.

• आकाशवाणी की बी हाई ग्रेड कलाकार.

 

प्रस्तुतियां

• भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित अंडमान निकोबार ‘द्वीप उत्सव’ कार्यक्रम में प्रदर्शन

• भारत भवन ‘वास्तुकला’ की 35वीं वर्षगांठ पर लोक गायन

• जनजाति संग्रहालय में 15 दिवसीय संजा एवं संजा गायन कार्यशाला

• एस.ओ.एस. बालग्राम के बच्चों को 15 दिवसीय कार्यशाला एवं अन्तर्राष्ट्रीय समारोह में प्रदर्शन व प्रथम पुरस्कार

 

रुचियां: लोकनाट्य ‘माच’, पारंपरिक गायन, लावणी गायन, हरियाणवी, राजस्थानी, बुंदेलखंडी गायन, मालवा के पारम्परिक लोकनृत्य मटकी, पनिहारी, गवई कान्हा ग्वालियाँ.

 

अन्य जानकारी: स्वाति के दादाजी सिद्धेश्वर सेन अपने समय के प्रसिद्ध ‘माचकार’ रहे हैं. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के विषय में राष्ट्रीय माच लिखे और छोटे-छोटे गांवों से लेकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में मालवा की प्रसिद्ध माच कला का परचम लहराया. बदलते दौर में ‘माच’ कला को जानने वाले कम हैं. स्वाति इस कला को जीवित रखने के साथ उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने के जतन में लगी हुई हैं. उनकी पुत्री चित्रांशी भी इस कला को अपनी माता से सीखते हुए नई पीढ़ी को इससे जोड़ने का प्रयास कर रही हैं.