जन्म: 20 फरवरी, स्थान: बुरबसपुर (डिंडोरी-म.प्र.).
माता: श्रीमती रामवती परस्ते, पिता: श्री चमरू सिंह परस्ते.
जीवन साथी: श्री सुभाष सिंह व्याम. संतान: पुत्र -01, पुत्री -02.
शिक्षा: अशिक्षित. व्यवसाय: चित्रकार (आदिवासी परधान गौंडी भित्ति चित्र).
करियर यात्रा: बचपन से ही दीवार पर मिट्टी से बनाए रंगों से फूलों के चित्र उकेरा करती थीं. इन्होंने अपनी माँ से डिगना (शादी-विवाहों और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित किए जाने वाली परंपरागत डिजायन) कला सीखी. नैसर्गिक प्रतिभा के चलते इन्होंने गौंड परम्परा के स्मृति चित्र बनाने में थोड़े ही दिनों में दक्षता हासिल कर ली. सुभाष सिंह व्याम से विवाह के बाद दुर्गाबाई भोपाल आ गईं. इनके पति यहाँ पहले ही एक कलाकार के तौर पर स्थापित थे. दुर्गा बाई की रचनाशीलता देखकर उनके बहनोई स्वर्गीय जनगण सिंह श्याम (परधान गौंड चित्रकार) ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें चित्रकारी के लिए प्रोत्साहित किया. दुर्गा बाई ने इनसे चित्रकारी की बारीकियां सीखीं. दुर्गा बाई की सृजन यात्रा इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय भोपाल से 1996 में प्रारंभ हुई. उसके बाद से भोपाल, दिल्लीं, देहरादून, खजुराहो, इंदौर, रायपुर, मुंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी सहित अनेक प्रदर्शनियों में इन्होंने हिस्सा लिया. 2003 में दुर्गाबाई को चैन्नई में तारा पब्लिशिंग द्वारा आयोजित कार्यशाला में आमंत्रित किया गया, उसके बाद इन्होंने अनेक प्रकाशकों के लिए किताबों (तारा पब्लिकेशन –वन-टू-थ्री, दे नाईट लाइफ ऑफ़ ट्रीज़, एकलव्य द्वारा प्रकाशित खिचड़ी तथा नवायना द्वारा प्रकाशित अम्बेडकर के जीवन पर आधारित भिमायना सहित अन्य किताबें) को चित्रित किया है.
उपलब्धियां/पुरस्कार
• राज्य स्तरीय पुरस्कार (2002)
• हस्ततशिल्पं विकास परिषद द्वारा सम्मानित (2004)
• आईजीएनसीए स्कालरशिप से अलंकृत (2006-2007)
• रानी दुर्गावती राष्ट्रीय पुरस्कार (2009)
• दिल्ली कथा चित्रकला (2009)
• राष्ट्रीय पुरस्कार (2011)
• विक्रम अवार्ड (मुंबई)
• लोकरंग अवार्ड
• पद्मश्री पुरस्कार (2022) सहित अन्य पुरस्कार व सम्मान प्राप्त
विदेश यात्रा: लंदन, जर्मनी, दुबई आदि. रुचियां: चित्रकला.
अन्य जानकारी: दुर्गा बाई इस कला के क्षेत्र में आने वाली पहली आदिवासी महिला चित्रकार हैं. लोककथाओं को चित्रित करना इनकी ख़ास विशेषता है. इन्होंने ही लोक-कथाओ को चित्रों पर उकेरना प्रारंभ किया. इनके अधिकांशत: चित्र गोंड परधान समुदाय के देवकुल व कथाओं पर आधारित हैं.