सुप्रीम कोर्ट : अगर पुरुषों को मासिक धर्म होता तो वे समझ पाते

blog-img

सुप्रीम कोर्ट : अगर पुरुषों को मासिक धर्म होता तो वे समझ पाते

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की कड़ी आलोचना की है। मामला महिला सिविल जजों की सेवाएं समाप्त करने और कुछ महिला जजों की सेवा बहाल न करने से जुड़ा है। इन महिला जजों की सेवाएं जिस तरीके से समाप्त की गई और उनमें से कुछ की सेवाएं बहाल करने से भी इनकार कर दिया गया। उसके लिए सुप्रीमकोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट की आलोचना की।

यह मामला न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, काश पुरुषों को भी पीरियड्स होते, तब उन्हें समझ में आता।

पीठ ने कहा कि न्यायाधीश मामलों की विस्तार से सुनवाई करते हैं। कोर्ट ने पूछा कि क्या न्यायाधीश मामले पर बहस करते समय कह सकते हैं कि वकील धीमे हैं? पीठ ने कहा, "खासकर महिलाओं के लिए, अगर वे शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित हैं, तो यह मत कहिए कि वे स्लो हैं और उन्हें घर भेज दीजिए।" न्यायमूर्ति नागरत्ना ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "काश पुरुषों को मासिक धर्म होता, तभी वे समझ पाते।"

पीठ ने जोर देकर कहा कि जब न्यायाधीश मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित हों तो मामलों के निपटान की दर कोई पैमाना नहीं हो सकती। पीठ ने जिला न्यायपालिका के लिए मामलों के निपटान की सेटिंग पर भी सवाल उठाया। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को तय की है। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने जून 2023 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छह न्यायाधीशों की बर्खास्तगी का स्वत: संज्ञान लिया था।

 

इन्हें भी पढ़िए ...

सुप्रीम कोर्ट : नारी शक्ति की बात करते हैं, इसे करके भी दिखाएं

सुप्रीम कोर्ट : शादी के बाद महिला को नौकरी से निकालना, लैंगिक असमानता

 

प्रशासनिक समिति और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पूर्ण-न्यायालय बैठक के बाद विधि विभाग ने बर्खास्तगी के आदेश पारित किए थे, जिसमें परिवीक्षा अवधि के दौरान उनके प्रदर्शन को असंतोषजनक पाया गया था। वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने मामले में न्यायमित्र की भूमिका निभाई।

क्या है मामला?

बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर, 2023 को कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार द्वारा छह महिला न्यायाधीशों की सेवाएं समाप्त किये जाने के मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 23 जुलाई को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से न्यायिक अधिकारियों की सेवाएं समाप्त करने के उसके फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने एक अगस्त को अपने पूर्व प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया और चार अधिकारियों- ज्योति वरकड़े, सुश्री सोनाक्षी जोशी, सुश्री प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी, को कुछ शर्तों के अधीन बहाल करने का निर्णय लिया। पीठ ने कहा था, "जहां तक दो अन्य अधिकारियों, यानी सरिता चौधरी और अदिति कुमार शर्मा का संबंध है, पहले के आदेशों और प्रस्तावों को रद्द नहीं किया गया है और पूर्ण पीठ ने उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों और अन्य सामग्रियों को एक सीलबंद लिफाफे में इस अदालत के समक्ष रखने का भी संकल्प लिया था।"

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

 

 

 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



इलाहाबाद हाईकोर्ट : हिंदू विवाह केवल
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट : हिंदू विवाह केवल , रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता

जस्टिस मनीष निगम ने अपने फैसले में कहा, 'हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत जब शादी विधिवत तरीके से होती है, तो उसका रजिस्ट्रे...

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट :  अपने पसंदीदा शादीशुदा
अदालती फैसले

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट :  अपने पसंदीदा शादीशुदा , मर्द के साथ रह सकती है महिला

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो उसे ऐसा करने से रोके।

दिल्ली हाईकोर्ट : पति की सैलरी बढ़ी
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : पति की सैलरी बढ़ी , तो पत्नी का गुजारा भत्ता भी बढ़ेगा  

महिला ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजारा भत्ता बढ़ाने की उसकी अपील को खारिज कर दिया गया था।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के जीवित रहने
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के जीवित रहने , तक भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है पति

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से सक्षम पति को अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना होगा जब तक वह जीवित है भले...

दिल्ली हाईकोर्ट : ग्रामीणों के सामने तलाक लेकर
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : ग्रामीणों के सामने तलाक लेकर , नहीं किया जा सकता हिंदू विवाह को भंग

कोर्ट ने CISF के एक बर्खास्त कांस्टेबल को राहत देने से इनकार कर दिया जिसने पहली शादी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी की थी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बिना वजह पति से दूरी बनाना मानसिक क्रूरता
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बिना वजह पति से दूरी बनाना मानसिक क्रूरता

10 साल से मायके में पत्नी, हाईकोर्ट में तलाक मंजूर