बॉम्बे हाईकोर्ट :  बच्चे को मां-बाप के खिलौने

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बॉम्बे हाईकोर्ट :  बच्चे को मां-बाप के खिलौने
की तरह नहीं समझा जाना चाहिए

बच्चे की कस्टडी से जुड़े एक केस की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय ने माता-पिता को कड़ी फटकार लगाई है। बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच का कहना है कि बच्चे को मां-बाप के खिलौने की तरह नहीं समझा जाना चाहिए। साथ ही कहा है कि बच्चे के हित को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने मां और पिता दोनों को बच्चे की गर्मियों की छुट्टी के दौरान बराबर कस्टडी देने के आदेश दिए हैं।

दरअसल, बच्चे की मां की तरफ से उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई थी, जिसके जरिए फैमिली कोर्ट के 8 मई के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने पिता को 7 हफ्ते और मां को 5 हफ्ते की कस्टडी दी थी। याचिका पर सुनवाई जस्टिस भरत देशपांडे की बेंच कर रही थी।

क्या बोला कोर्ट

कोर्ट ने कहा  'यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि माता-पिता मिलने के अधिकार की भरपाई करने के लिए बच्चे को खिलौने की तरह नहीं समझा जाना चाहिए। बच्चे के साथ इंसान जैसा बर्ताव जरूरी है और सबसे जरूरी बात यह है कि बच्चे के हित को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए।' अदालत में 14 जून को आदेश जारी किया था। 

बच्चे के माता-पिता अमेरिकी नागरिक हैं। उनकी शादी कैलिफोर्निया में हुई थी और बच्चे का जन्म 2019 में पेरिस में हुआ। कुछ समय बाद ही दोनों के बीच रिश्ते तल्ख हुए और पिता बच्चे को लेकर गोवा आ गए। तब कैलिफोर्निया की कोर्ट ने एक्स पार्ट ऑर्डर में बच्चे की कस्टडी पिता को सौंप दी थी। इसके बाद मां भी भारत पहुंची और दोनों ने मिलकर मापुसा में फैमिली कोर्ट का रुख किया। खास बात है कि उच्च न्यायालय ने आदेश में यह भी बताया है कि उसने अक्टूबर 2023 में फैमिली कोर्ट के जून 2023 के एक आदेश का संशोधन किया है। तब बच्चे की कस्टडी मां को दी गई थी और पिता को मिलने का अधिकार दिया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, पिता बच्चे के खराब स्वास्थ्य के कारण उससे नहीं मिल सका था और उन्होंने स्कूल की छुट्टियों के दौरान बच्चे की कस्टडी के लिए मापुसा के फैमिली कोर्ट में आवेदन दाखिल कर दिया। फैमिली कोर्ट की तरफ से जारी आदेश में पिता को 7 हफ्ते और मां को 5 हफ्ते कस्टडी दी गई थी। इसके खिलाफ मां ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जज साहब ने कहा कि पिता को 7 हफ्ते की कस्टडी देना बच्चे के हित के खिलाफ है। साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसी नाजुक उम्र में मां की मौजूदगी उसके लिए ज्यादा जरूरी है। कोर्ट ने माता-पिता के बीच कस्टडी के समय को बराबर बांटने की बात कही है। ऐसे में दोनों के बीच 11 सप्ताह बराबर बांटे जाएंगे और दोनों को 5-5 सप्ताह की कस्टडी मिलेगी।

संदर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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