छाया: दैनिक भास्कर
• सविता की पेंटिंग में भील जनजाति की परंपरा
• प्रकृति प्रेम और हिरण, पक्षी, गाय, मोर, शेर जहां-तहां मौज उड़ाते नजर आते हैं
• इस 31वीं एग्जीबिशन में 25 चित्र शामिल
• शलाका प्रदर्शनी शृंखला
बहुएं ससुराल में आकर वहां के रीति-रिवाज, तौर-तरीके और मान्यताएं सीखती हैं... मैंने कलाकारी सीखी। कभी-कभी अपनी किस्मत पर फक्र होता है कि कहां एक साधारण सी लड़की एक कलाकार मां के घर में ब्याही और पद्मश्री सम्मानित सास की शिष्या बन बैठी। अब मां (भूरी बाई) की तरह ही मैं भी रंगों के जरिए कीर्ति-यश पाने का सपना देखती हूं। यह बात कही भील कलाकार सविता बारिया ने। गुरुवार को इनकी पेंटिंग एग्जीबिशन जनजातीय संग्रहालय की लिखंदरा कला दीर्घा में शुरू हुई। शलाका चित्र प्रदर्शनी शृंखंला के तहत आयोजित इस 31वीं चित्र प्रदर्शनी में 25 चित्र शामिल हैं।
• सास को चित्रकारी करते देखा, फिर उन्होंने ही रंग भरना सिखाया
सविता के चित्रों में भील जनजाति की परंपराओं समेत प्रकृति के प्रेम की प्रगाढ़ता नजर आती है। हिरण, पक्षी, गाय, मोर, शेर और बच्चे... इसके चित्रों में जहां-तहां मौज उड़ाते नजर आते हैं। सविता बताती हैं, मेरी 12 साल पहले शादी हुई। उससे पहले कभी कलर और ब्रुश को छुआ नहीं था। ससुराल पहुंची तो सास को चित्रकारी करते देखा। फिर एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और उनके स्केच्ड शीट्स पर रंग भरने को कहा। ढाई साल तक उनके साथ काम करते-करते हिम्मत आई कि पूरी पेंटिंग खुद बना सकूं। अब मैं भी एक स्वतंत्र चित्रकार हूं, लेकिन मां का सान्निध्य हमेशा बना रहता है।
संदर्भ स्रोत : दैनिक भास्कर
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