पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति पर नौकरी पाने वाली बहू को अपनी सास के भरण-पोषण का दायित्व निभाना होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य केवल रोजगार देना नहीं, बल्कि उससे जुड़ी जिम्मेदारियों को भी सम्मान देना है।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने बहू की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्तियां उस परिवार को आर्थिक संकट से उबारने के लिए की जाती हैं, जिसने अपने परिवार के कमाने वाले सदस्य को खो दिया हो। लेकिन, इस तरह से नौकरी पाने वाला व्यक्ति मृतक के आश्रितों और परिवार के प्रति अपनी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता।
पति की मौत के बाद मिली थी आरसीएफ में नौकरी
यह मामला तब उठा जब याचिकाकर्ता को 2005 में अपने पति की मृत्यु के बाद कपूरथला स्थित रेल कोच फैक्ट्री में जूनियर क्लर्क की नौकरी मिली थी। नौकरी मिलने के समय याचिकाकर्ता ने शपथ पत्र के माध्यम से यह वादा किया था कि वह अपने मृतक पति के परिवार और आश्रितों का ख्याल रखेंगी।
इस शपथ पत्र का हवाला देते हुए जस्टिस बराड़ ने कहा, याचिकाकर्ता केवल अनुकंपा नियुक्ति का लाभ लेती रहें और उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से बचें, यह स्वीकार्य नहीं है। न्यायालय ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता हर महीने 80,000 रुपये कमा रही हैं। इस आधार पर वह अपनी सास को 10,000 रुपये मासिक भरण-पोषण के रूप में आसानी से दे सकती हैं।
जस्टिस बराड़ ने कहा कि यद्यपि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 और अब बीएनएसएस की धारा 144 में बहू पर सास-ससुर के भरण-पोषण की कोई स्पष्ट कानूनी बाध्यता नहीं है, फिर भी इस मामले में न्याय की आवश्यकता को देखते हुए कानून की व्याख्या करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इन कानूनों का उद्देश्य आश्रितों को दर-दर की ठोकरें खाने और गरीबी से बचाना है।
कोर्ट ने कहा कि न्याय का व्यापक उद्देश्य वही देना है, जो उचित है। जवाबदेही और निष्पक्षता इसके मुख्य सिद्धांत हैं। लेकिन यदि न्याय को यांत्रिक रूप से लागू किया जाए, तो यह अपने उद्देश्य में विफल हो जाएगा। न्याय का स्वरूप गतिशील है, और इसे समाज की बदलती नैतिकता के अनुसार देखा जाना चाहिए। न्याय की सार्थकता केवल करुणा के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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