प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में आरोपी को सशर्त जमानत देते हुए कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि अंतरंग संबंध विफल होने पर कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने अंतरंग संबंधों की पवित्रता और गंभीरता में गिरावट पर भी चिंता जताई है। आरोपी का दावा है कि पीड़िता उसके साथ सहमति से संबंध में थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने दुष्कर्म के मामले में आरोपित अरुण कुमार मिश्र को यह कहते हुए सशर्त जमानत दी है कि प्रतीत होता है कि अंतरंग संबंध विफल होने पर कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने अंतरंग संबंधों की पवित्रता व गंभीरता में गिरावट पर भी चिंता जताई है। आरोपित का दावा है कि पीड़िता उसके साथ सहमति से संबंध में थी।
मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार पीड़िता का संबंधित आरोपित से दिल्ली में एक निजी बैंक में काम करने के दौरान संपर्क हुआ। पीड़िता को अपनी कंपनी में नौकरी दिलाने का वादा किया तो उसने बैंक की नौकरी छोड़ दी और आरोपित की कंपनी में 75 हजार रुपये मासिक वेतन पर निजी सहायक के रूप में काम करने लगी।
आरोपित पर महिला ने लगाया दुष्कर्म का आरोप
12 जनवरी, 2024 को आरोपित ने काफी में नशीला पदार्थ मिलाकर बेसुध करने के बाद उससे दुष्कर्म किया। इसका वीडियो बना ब्लैकमेल किया। कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा कर उसके साथ सप्तपदी की (सात फेरे लिए) और सिंदूर लगाने के लिए मजबूर किया। दिल्ली में दुष्कर्म के साथ अप्राकृतिक संबंध भी बनाया। प्लेन से मुंबई गया और ताज होटल में ठहरा। फरवरी, 2024 में आरोपित पीड़िता को लेकर बांदा के बबेरू स्थित अपनी चाची के घर पहुंचा। यहां उसने फिर दुष्कर्म किया। बांदा में पीड़िता को पता चला कि वह गर्भवती है और यह भी मालूम हुआ कि अरुण ने पहले भी तीन महिलाओं से शादी की है और प्रत्येक से उसके बच्चे हैं। मार्च में दुष्कर्म और मारपीट के कारण गर्भ गिर गया। आरोपित पर दस्तावेज, कपड़े और गहने जब्त करने का भी आरोप पीड़िता ने बांदा में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में लगाया है। उसका कहना है कि आर्य समाज नोएडा में विवाह के जाली दस्तावेज तैयार कर उसका वेतन रोका गया।
अपीलार्थी के वकील ने एफआइआर में पांच महीने की देरी को मुख्य आधार बनाया। कहा, 'पीड़िता आवेदक के साथ सहमति से संबंध में थी और वह स्वेच्छा से उसके साथ कई स्थानों पर गई। मुंबई, लखनऊ व शिर्डी के होटलों में रुकी।'
नैतिक रूप से संदिग्ध सभी कार्य कानूनन अपराध नहीं
कोर्ट ने कहा- नैतिक रूप से संदिग्ध सभी कार्य कानूनन अपराध नहीं माने जा सकते। एफआईआर घटना के पांच महीने बाद हुई। यह मामला गंभीर आपराधिक कृत्य की जगह भावनात्मक प्रतिक्रिया का लगता है। इसलिए आरोपी को जमानत दी जाती है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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