प्रयागराज। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सख्ति टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान महत्वसपूर्ण फैसला दिया। उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता की पॉक्सो में दर्ज मुकदमे को वापस लेने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस कानून के तहत अपराध को आरोपी और पीड़ित के बीच महज समझौते के आधार पर दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति समित गोपाल ने पॉक्सो कानून के तहत आरोपी संजीव कुमार की याचिका को खारिज करते हुए कहा, ‘जब अपराध करने के लिए नाबालिग पीड़िता की सहमति मायने नहीं रखती तो समझौता सहित सभी चरणों में सभी व्यवहारिक उद्देश्यों के लिए उसकी सहमति मायने नहीं रखेगी। महज इसलिए कि नाबालिग पीड़िता बाद में याचिकाकर्ता के साथ समझौता करने के लिए राजी हो गई है यह पॉक्सो कानून के तहत मुकदमा रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।’
क्या है पूरा मामला
आजमगढ़ जिले के बिलारीगंज थाने में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म), 313 (महिला की सहमति के बगैर गर्भपात कराना) और पॉक्सो कानून की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसकी सुनवाई आजमगढ़ में विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) के समक्ष चल रही है। आरोपी ने आपराधिक मुकदमे पर रोक लगाने और निचली अदालत द्वारा समन जारी करने के आदेश को खारिज करने की मांग की थी।
आरोपी ने दिया समझौते का तर्क
आरोपी ने दोनों पक्षों के बीच समझौते का हवाला देते हुए लंबित मामले पर निर्णय के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था। आरोपी याचिकाकर्ता की याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के वकील ने कहा कि उस पर आरोप है कि उसने नाबालिग लड़की के साथ तीन वर्षों तक दुष्कर्म किया और कथित अपराध के समय लड़की की उम्र 15 वर्ष थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का संदर्भ देते हुए दो अप्रैल के अपने निर्णय में कहा कि ये अपराध पॉक्सो जैसे विशेष कानून के अंतर्गत कथित रूप से किए गए हैं, इसलिए महज समझौते के आधार पर मुकदमे को रद्द नहीं किया जा सकता। भले ही इसके लिए पीड़ित पक्ष ही राजी क्यों न हो। पॉक्सोर के मामले में समझौते की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
संदर्भ स्रोत : न्यूज़ 18
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