छाया: नवदुनिया
जबलपुर। बलात्कार की शिकार गर्भवती नाबालिग को गर्भपात की हाईकोर्ट ने अनुमति दे दी। जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने कहा कि पीड़िता 17 साल की उम्र की है और बच्चे को जन्म देना न केवल उसके जीवन के लिए खतरा हो सकता है, बल्कि बच्चे को भी जीवन भर सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता के पिता को यह हलफनामा देना होगा कि वह गर्भपात के बाद बलात्कार के आरोप से पीछे नहीं हटेगा।
इस मामले में नाबालिग की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ बलात्कार और पॉक्सो एक्ट की धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया था। बाद में पता चला कि पीड़िता गर्भवती है। इससे परेशान होकर उसकी ओर से जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भपात की अनुमति मांगी गई थी। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़की को चिकित्सीय गर्भपात कराने की अनुमति इस शर्त के साथ दी कि याचिकाकर्ता और उसके पिता को जांच अधिकारी को इस आशय का एक हलफनामा देना होगा कि चूंकि उन्होंने बलात्कार के आरोप पर लड़की की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग की है, लिहाज़ा वे मुकदमे के दौरान भी अपने बयान से पीछे नहीं हटेंगे।
आदेश में यह भी कहा गया है कि निचली अदालत को निर्देश दिया जाता है कि अगर पीड़िता मुकर जाती है और दावा करती है कि आरोपी ने कोई बलात्कार नहीं किया है या वह खुद के बालिग होने का दावा करती है तो निचली अदालत को उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करने के साथ-साथ पीड़िता की गवाही का पत्र भी दाखिल करना होगा।
डॉक्टरों ने दी रिपोर्ट
हाईकोर्ट के निर्देश पर पीड़िता का चिकित्सीय परीक्षण किया गया, तो स्त्री रोग विभाग के प्रभारी, जिला अस्पताल सागर के स्त्री रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी और मनोचिकित्सा के सहायक प्रोफेसर, बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर की टीम ने अपनी राय दी। बताया कि गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन इसी चरण में संभव है। इस पर हाईकोर्ट ने जल्द से जल्द चिकित्सीय समापन करने का निर्देश दिया और याचिकाकर्ता के साथ-साथ आरोपी के रक्त के नमूने के साथ भ्रूण को डीएनए परीक्षण के लिए भेजने का निर्देश दिया।
संदर्भ स्रोत : पत्रिका
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