पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट : बच्ची के व्यक्तित्व विकास के लिए उसकी मां के पास रहना जरूरी

blog-img

पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट : बच्ची के व्यक्तित्व विकास के लिए उसकी मां के पास रहना जरूरी

चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 10 साल की बच्ची की अभिरक्षा (कस्टडी) उसकी मां को सौंपे जाने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने मोहाली निवासी पिता की उस दलील को खारिज कर दिया गया कि वह अपनी बेटी के भविष्य के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं, इसलिए वे उसकी कस्टडी के हकदार हैं।

जस्टिस अर्चना पुरी ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि पिता द्वारा अपनी बेटी के लिए आर्थिक सुरक्षा बनाना सराहनीय है, लेकिन यह एक पिता का कर्तव्य है। इस उम्र में बच्चे की परवरिश के अन्य पहलू कहीं अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जो उसके व्यक्तित्व के निर्माण में योगदान देते हैं। उन्होंने कहा कि वित्तीय सुरक्षा भविष्य में शांति प्रदान कर सकती है, लेकिन इस उम्र में बच्चा इससे अधिक जुड़ाव महसूस नहीं करता। कोर्ट ने यह भी माना कि बच्ची अपनी मां के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही है और पिता को दिए गए मुलाकात के अधिकार बरकरार रहेंगे।

कोर्ट ने माता-पिता के साथ बिताए जाने वाले समय की भावनात्मक जरूरतों को भी ध्यान में रखा और इस बात पर जोर दिया कि दोनों मिलकर हर चार महीने में एक पारिवारिक यात्रा की योजना बनाएं, जिसकी पूर्व सूचना गार्जियन कोर्ट को दी जाए।

यह मामला उस याचिका से संबंधित था, जिसमें पिता ने गार्जियन कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें केवल मुलाकात के अधिकार दिए गए थे। मामले के अनुसार, मां और बच्ची वर्ष 2019 से पिता से अलग रह रहे थे।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बच्चों की कस्टडी से जुड़े मामलों के लिए कोई तयशुदा नियम नहीं हो सकते, क्योंकि हर मामला अपने आप में अनूठा होता है। इसलिए कोर्ट को परिस्थितियों के अनुरूप लचीलापन बनाए रखना चाहिए और प्रत्येक स्थिति को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित करने चाहिए, ताकि बच्चे का सर्वोत्तम हित सुरक्षित रहे। कोर्ट ने उस निर्देश को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मुलाकात के दौरान पति-पत्नी को एक-दूसरे से संपर्क नहीं करना चाहिए। हाईकोर्ट ने इसे कठोर करार देते हुए कहा कि यह आदेश बच्चे के हितों के विपरीत जाता है।

अदालत ने सोशल पीडियाट्रिक्स की रिपोर्ट का हवाला देकर माता-पिता को अधिक समय साथ बिताने की सलाह दी। ताकि वे बच्चे के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रख सकें। इस आधार पर अदालत ने पिता के मुलाकात के अधिकार को बरकरार रखते हुए मां को निर्देश दिया कि वह बच्चे की चिकित्सकीय जरूरतों की जानकारी पिता को भी देती रहें, ताकि जरूरत पड़ने पर दोनों मिलकर निर्णय ले सकें।

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बॉम्बे हाईकोर्ट : सिर्फ बेटी के रोने से ससुराल
अदालती फैसले

बॉम्बे हाईकोर्ट : सिर्फ बेटी के रोने से ससुराल , वालों को नहीं ठहराया जा सकता दोषी

अदालत ने कहा कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करना जरूरी है।

ग्वालियर हाईकोर्ट: पति का तलाक के
अदालती फैसले

ग्वालियर हाईकोर्ट: पति का तलाक के , वादे से मुकरना मानसिक क्रूरता

16 साल से अलग रह रहे थे दंपती, कोर्ट ने पत्नी की तलाक अर्जी स्वीकार की

दिल्ली हाईकोर्ट : सात फेरे नहीं होने पर भी विवाह वैध
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : सात फेरे नहीं होने पर भी विवाह वैध

अदालत ने कहा है कि बंजारा समुदाय अब काफी हद तक हिंदू बन गया है और हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई बंजारा शादी भी हि...

ओडिशा हाईकोर्ट : पोते के पालन-पोषण के लिए
अदालती फैसले

ओडिशा हाईकोर्ट : पोते के पालन-पोषण के लिए , दादा-दादी का स्नेह जरूरी

ओडिशा हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का फैसला पलटा, पिता को बच्चे से मिलने की परमिशन दी

महिला आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त,
अदालती फैसले

महिला आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, , केंद्र से पूछा-कब लागू होगा 33% आरक्षण?

लागू करने में देरी वाले मामले को लेकर देश के सर्वोच्च न्ययालय में सुनवाई हुई। मामले में कोर्ट ने सरकारी एक नोटिस जारी कि...

केरल हाईकोर्ट : पत्नी को नौकरी
अदालती फैसले

केरल हाईकोर्ट : पत्नी को नौकरी , छोड़ने के लिए मजबूर करना क्रूरता

कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथी के पर शक और निगरानी शादी की नींव को खोखला कर सकती है, जो विश्वास, सम्मान और भावनात्मक सुरक्षा प...