सुप्रीम कोर्ट : दहेज उत्पीड़न में पति के दूर के रिश्तेदार न फंसाए जाएं

blog-img

सुप्रीम कोर्ट : दहेज उत्पीड़न में पति के दूर के रिश्तेदार न फंसाए जाएं

नई दिल्ली। दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) का अहम फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को आगाह किया कि वे यह सुनिश्चित करें कि पति के दूर के रिश्तेदारों को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत घरेलू क्रूरता का आरोप लगाने वाली पत्नी के कहने पर दर्ज आपराधिक मामलों में अनावश्यक रूप से न फंसाया जाए। 

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने आरोपी पति के चचेरे भाई की पत्नी पायल शर्मा के खिलाफ 2020 की FIR और चार्जशीट को रद्द कर दिया। ⁠पायल के खिलाफ पीड़िता के पिता द्वारा दर्ज कराई गई FIR में बतौर आरोपी शामिल किया गया था। 

याचिकाकर्ता ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (HARIYANA HIGH COURT) द्वारा उनके खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट यह जांच करने के लिए बाध्य है कि क्या पति के दूर के रिश्तेदारों पर आरोप अतिशयोक्तिपूर्ण और अतिरंजित था?

आरोप तय होने से पहले भी चार्जशीट  को निरस्त करने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत याचिका दायर की जा सकती है और केवल इस आधार पर आवेदन को खारिज करना न्याय के हित में नहीं होगा कि संबंधित आरोपी आरोप तय होने के समय कानूनी और तथ्यात्मक मुद्दों पर बहस कर सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि 'रिश्तेदार' शब्द को कानून में परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए इसे एक अर्थ दिया जाना चाहिए जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है। सामान्य तौर पर, इसमें किसी भी व्यक्ति के पिता, माता, बेटा, बेटी, भाई, बहन, भतीजा, भतीजी, पोता या पोती या किसी व्यक्ति के जीवनसाथी को शामिल किया जा सकता है। ⁠FIR और अंतिम रिपोर्ट और सामग्रियों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद पीठ ने कहा कि हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह सुझाव दे कि वे आरोपी के खिलाफ कथित अपराध का गठन करते है। 

ऐसे आरोपों या अभियोग के आधार पर आरोपी को ट्रायल का सामना करना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं होगा। 2010 के एक फैसले के आधार पर पीठ ने कहा कि हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि इस अदालत  की टिप्पणी वास्तव में, इस प्रकार के वैवाहिक विवादों में कर्तव्य का निर्वहन न करने के विरुद्ध चेतावनी है कि क्या पति के परिवार का करीबी रिश्तेदार न होने वाले व्यक्ति को फंसाना अतिशयोक्ति है या क्या ऐसे किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप अतिशयोक्तिपूर्ण है। 

दरअसल इस मामले में, पहले आरोपी अमित शर्मा और वंदना शर्मा का 23 फरवरी, 2019 को विवाह  हुआ था।7 मार्च, 2019 को अमित कनाडा चला गया और वंदना अपने ससुराल वालों के साथ जालंधर में अपने वैवाहिक घर में ही रुक गई। ⁠2 दिसंबर, 2019 को वंदना भी कनाडा चली गई।  22 सितंबर, 2020 को अमित ने अपनी पत्नी वंदना से तलाक लेने के लिए कनाडा के फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ⁠वहीं 3 दिसंबर, 2020 को वंदना के पिता द्वारा FIR दर्ज की। 

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



दिल्ली हाईकोर्ट : पत्नी को ससुर के घर में रहने का अधिकार,
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : पत्नी को ससुर के घर में रहने का अधिकार, , भले ही वह पति के साथ रहने से इनकार करे

यह फैसला उन सभी महिलाओं के लिए राहत भरा है जो पारिवारिक विवादों के कारण अपने निवास के अधिकार से वंचित हो जाती हैं।

झारखंड हाई कोर्ट  : तलाक के लिए परित्याग शारीरिक अलगाव पर साबित नहीं होता
अदालती फैसले

झारखंड हाई कोर्ट  : तलाक के लिए परित्याग शारीरिक अलगाव पर साबित नहीं होता

कोर्ट ने यह भी कहा कि परित्याग के आरोप के लिए केवल अस्थायी क्रोध या नफरत के कारण छोड़ा गया विवाह नहीं माना जा सकता। इसे...

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट : बांझपन को लेकर ताने मारने के
अदालती फैसले

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट : बांझपन को लेकर ताने मारने के , आरोप मात्र से नहीं बनता 498A का मामला

हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना की याचिका खारिज की. कहा- ऐसे आरोप जांच में टिक नहीं सकते

दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे बलात्कार मामलों
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे बलात्कार मामलों , के चलन पर जताई नाराजगी

महिला की याचिका खारिज, कहा- 'FIR रद्द करने से कायम होगी गलत मिसाल'

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट : तलाक लिए बिना दूसरी
अदालती फैसले

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट : तलाक लिए बिना दूसरी , शादी की तो उसे अवैध ही माना जाएगा

महिला की अनुकंपा नियुक्ति की मांग खारिज-कोर्ट ने कहा कि पारंपरिक प्रथाएं कानून के स्थान पर नहीं ली जा सकतीं।