राजस्थान हाईकोर्ट : सौतेली मां के राजकीय सेवा में होने के

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राजस्थान हाईकोर्ट : सौतेली मां के राजकीय सेवा में होने के
कारण अनाथ युवती को अनुकम्पा नियुक्ति न देना गलत

जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा ने एक अनाथ युवती को राहत देते हुए राज्य सरकार की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि सौतेली मां के राजकीय सेवा में कार्यरत होने के कारण अनाथ को अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

दरअसल, पीपाड़ सिटी निवासी 19 वर्षीय गुनगुन की ओर से अधिवक्ता रजाक खान हैदर ने रिट याचिका दायर की। जिसमें बताया कि दो वर्ष की आयु में मां और फिर 18 वर्ष की आयु में पिता को खो चुकी गुनगुन की विशेष परिस्थितियों के बावजूद राज्य सरकार के माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा नियमों की संकीर्ण व्याख्या कर अनुकंपात्मक नियुक्ति का आवेदन खारिज कर दिया है।

याचिका ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अध्यापक के पद पर कार्यरत उसके पिता ने वर्ष 2006 में उसकी माता की असामयिक मृत्यु होने पर वर्ष 2008 में राजकीय सेवा में कार्यरत महिला से पुनर्विवाह किया था। वर्ष 2022 में सेवाकाल के दौरान उसके पिता की भी मृत्यु होने पर वह अनाथ व बेसहारा हो गई। उसने अनुकंपात्मक नियुक्ति के लिए आवेदन किया, जिसे विभाग ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि याचिकाकर्ता की जीवित माता के राजकीय सेवा में नियोजित होने से उन्हें अनुकंपात्मक नियुक्ति नहीं मिलेगी।

बेटी न सौतेली मां की देखरेख में न उसके साथ रह रही, इसलिए मदद जरूरी

हाईकोर्ट ने कहा कि अनाथ याचिकाकर्ता ने अपने अस्तित्व के लिए आजीविका की तलाश के लिए न्यायालय का रुख किया है। इसलिए यह जरूरी है कि उसके पिता के निधन के बाद उसे सहायता प्रदान करने के लिए लागू अनुकम्पा नीतियों का लाभ दिया जाए। अनुकंपात्मक नीति का परोपकारी इरादा परिवार के कमाने वाले की मृत्यु पर जीवित रहने का अवसर प्रदान करना है, ताकि उनके सामने वित्तीय संकट न आए और उन्हें गरीबी में जीवन न बिताना पड़े। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि मृत सरकारी कर्मचारी के बदले में सेवा प्रदान करके आश्रित को चुनौतीपूर्ण अवधि के दौरान आवश्यक वित्तीय सहायता प्राप्त हो। 

जस्टिस मोंगा ने याचिकाकर्ता की परिस्थितियों पर विचार करते हुए कहा कि सौतेली माता का याचिकाकर्ता के प्रति कोई कानूनी दायित्व नहीं है और सौतेली माता को सरकारी नौकरी इस शर्त के साथ नहीं दी गई थी कि उसके पिता के निधन के बाद उसे याचिकाकर्ता की मदद करनी होगी। इसके अलावा याचिकाकर्ता न तो अपनी सौतेली माता की देखरेख में है और न ही उसके साथ रहती है।

यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के पिता के निधन के बाद सौतेली माता जीवन में आगे बढ़ गई है। उपरोक्त विशेष परिस्थिति को देखते हुए याचिका को आवश्यक रूप से अनुमति दी जानी चाहिए। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने दो माह में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने का आदेश पारित किया।

संदर्भ स्रोत: दैनिक भास्कर

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