सुप्रीम कोर्ट : पत्नी द्वारा सास-ससुर से अलग रहने

blog-img

सुप्रीम कोर्ट : पत्नी द्वारा सास-ससुर से अलग रहने
पर, पति को तलाक का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि यदि कोई पत्नी अपने पति को उसके बूढ़े माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करती है तो पति तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है। यह फैसला एक हिन्दू विवाह मामले में सुनाया गया था जिसमें पत्नी ने अपने पति को उसके माता-पिता के साथ रहने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिन्दू कानून के अनुसार, कोई भी पत्नी अपने पति को उसके माता-पिता के प्रति पवित्र कर्तव्यों का पालन करने से नहीं रोक सकती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि माता-पिता की देखभाल करना एक बेटा/बेटी का नैतिक और कानूनी दायित्व है और पत्नी को इस दायित्व को पूरा करने में पति को बाधा नहीं डालनी चाहिए।

इस निर्णय से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने समाज की संरचना और परंपराओं को मध्यस्थता की दृष्टि से देखा है जो बेटे को अपने परिवार के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए प्रेरित करेगा। जस्टिस अनिल आर दवे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि शादी के बाद महिला पति के परिवार की सदस्य बन जाती है। उन्होंने इस बात को सामने रखते हुए कहा कि महिला इस आधार पर अपने पति से अलग नहीं हो सकती है कि वह अपने पति की आय का पूरा उपभोग नहीं कर पा रही है। कोर्ट ने इस बात को गंभीरता से लिया है और टिप्पणी की है कि माता-पिता से अलग रहने की पश्चिमी सोच हमारी सभ्यता-संस्कृति और मूल्यों के खिलाफ है। यह फैसला महिलाओं के सम्मान और अधिकारों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें उन्होंने यह बताया कि भारतीय समाज में हिन्दू परिवारों में यह सामान्य नहीं है कि कोई बेटा अपनी पत्नी के कहने पर शादी के बाद अपने बूढ़े मां-बाप को छोड़ दे। खासकर तब जब बेटा ही परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य हो। एक बेटे को उसके माता-पिता ने न केवल जन्म दिया है बल्कि उन्होंने उसकी परवरिश की, उसे बड़ा किया, पढ़ाया और लिखाया। अब उसकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी बनती है कि वह बूढ़े माता-पिता की देखभाल करे। खासकर तब जब उनकी आय या तो बंद हो गई हो या कम हो गई हो।

कर्नाटक के इस दंपत्ति की जो शादी 1992 में हुई थी उसके बाद से ही महिला ने अपने पति पर अकेले रहने का दबाव बनाए रखा था। उसकी क्रूर हरकतों की वजह से बाद में पति ने निचली अदालत में तलाक की अर्जी दी थी। महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति के नौकरानी के साथ अवैध संबंध हैं इसलिए वह मुझे तलाक दे रहे हैं लेकिन कोर्ट ने इसे झूठा पाया। निचली अदालत ने तलाक को मंजूर कर लिया। बाद में हाईकोर्ट ने महिला का पक्ष लिया और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी।

सन्दर्भ स्रोत : एमसी पंचकूला

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



राजस्थान हाईकोर्ट  : वित्तीय हालात बेहतर होना बच्चे की अभिरक्षा का आधार नहीं
अदालती फैसले

राजस्थान हाईकोर्ट  : वित्तीय हालात बेहतर होना बच्चे की अभिरक्षा का आधार नहीं

हाईकोर्ट फैसला दुबई में बसे पिता को नहीं, मां को दी कस्टडी, कहा मां ही कर सकती है बच्चे की अच्छी परवरिश

सुप्रीम कोर्ट : 'यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता को बार-बार नहीं बुला सकते
अदालती फैसले

सुप्रीम कोर्ट : 'यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता को बार-बार नहीं बुला सकते

सुप्रीम कोर्ट की दो टूक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीडि़ता को ट्रायल कोर्ट में गवाही देने के लिए...

इलाहाबाद हाईकोर्ट- पति को अलग कमरे
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट- पति को अलग कमरे , में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता

हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक देने के लिए क्रूरता के आधार को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।

 सुप्रीम कोर्ट : महिला के जेवरों पर किसी अधिकार नहीं
अदालती फैसले

 सुप्रीम कोर्ट : महिला के जेवरों पर किसी अधिकार नहीं

अदालत ने कहा - देने वाले पिता भी नहीं कर सकते दावा