मप्र उच्च न्यायालय ने भोपाल के उस बैंक कर्मचारी को राहत देने से इनकार कर दिया है, जिसने अपनी पत्नी को इस शर्त के साथ तलाक के कागज़ात भेजे थे कि यह 'इद्दत' की अवधि ( यानी तीन मासिक धर्म चक्र, जैसा कि है तलाक-ए-अहसन के तहत माना जाता है ) के दौरान अगर वह उसके साथ रहने के लिए वापस नहीं लौटी, तो तलाक मान लिया जाएगा। अदालत ने कहा कि पत्नी के लिए तलाक से बचने की शर्त लगाना इसे ‘तात्कालिक और अपरिवर्तनीय’ बनाता है और इसे 2019 अधिनियम के दायरे में लाता है जो तत्काल तलाक को अवैध घोषित करता है।
याचिकाकर्ता जावेद नसीम ने 'तीन तलाक कानून' के तहत उनकी पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई एफ़आईआर को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने दलील दी कि उन्होंने तलाक-ए-अहसन के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किया था और तुरंत तलाक नहीं दिया जैसा कि तलाक-ए-बिदत या तीन तलाक के तहत किया जाता है। साथ ही, उन्होंने तर्क दिया, तलाक-ए-अहसन को निर्दिष्ट अवधि के दौरान रद्द किया जा सकता है।
हालांकि, न्यायमूर्ति जी एस अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि नसीम द्वारा अपनी पत्नी को भेजे गए तलाकनामे में स्पष्ट किया गया है कि वह उसे तभी स्वीकार करेगा जब वह इद्दत अवधि के भीतर उसके पास लौट आएगी, अन्यथा शादी टूट जाएगी। कोर्ट ने कहा, "इस तरह, पति पहले ही अपरिवर्तनीय तलाक की मंशा ज़ाहिर कर चुका है।"
सन्दर्भ स्रोत : टाइम्स ऑफ़ इण्डिया
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