बरेली में पारिवारिक न्यायालय के अपर प्रधान न्यायधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने तलाक के एक मामले में स्वीकृति देते हुए टिप्पणी की कि जो लड़कियां शादी के बाद एकाकी जीवन जीना चाहती हैं, वे शादी के बायोडाटा में अपनी प्रेफ्रेंस (वरीयता) स्पष्ट लिखें, कि ऐसा वर चाहिए जो माता-पिता, भाई-बहन की जिम्मेदारी या दायित्व से मुक्त हो।
मामला युवक की ओर से 2024 में पारिवारिक न्यायालय में दायर किया गया। बदायूं के रहने वाले युवक शुभाशीष सिंह ने बताया कि उनकी शादी फरीदपुर की रहने वाली दीक्षा वर्मा से फरवरी 2019 में हुई थी। शादी के बाद युवती को सास-ससुर के साथ रहना रास नहीं आया। वह शादी के बाद से ही फोन पर अपने मायके वालों से बात करने लगी। कुछ दिन बाद पत्नी छह अक्तूबर 2020 से ही लगातार अलग रह रही है।
युवती ने लगाया था ये आरोप
जिसके बाद पत्नी ने पति के समक्ष माता-पिता से अलग रहने का प्रस्ताव रखा। युवती शिक्षिका है वहीं युवक का अपना व्यवसाय है। युवती ने आरोप लगाया कि ससुरालीजन पति की दूसरी शादी कराना चाहते थे जबकि मेरे पिता ने शादी में 25 लाख रुपये खर्च किए। वहीं कोर्ट ने कहा कि युवती के पिता स्वयं एक निजी कार चलाते हैं और जमीन भी बहुत नहीं है। इस तरह के आरोपों को कोर्ट ने निराधार बताया।
अपर न्यायाधीश ने महाभारत की टिप्पणी के साथ कहा- असंख्य लोग मरते हैं फिर भी लोग सोचते हैं कि वे जीवित रहेंगे। वर्तमान में लोग वृद्धाश्रमों व बंद फ्लैट में एकाकी जीवन जी रहे हैं, जबकि संयुक्त परिवार अकेलेपन को संस्तुति करता है। अंत में दोनों पक्षों के तलाक को स्वीकृति देते हुए अलग रहने का निर्णय सुनाया।
बरेली में महिला ने अपने पति के सामने माता-पिता से अलग रहने का प्रस्ताव रखा। पति ने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं मानी। पारिवारिक विवाद कोर्ट में पहुंच गया। पति ने तलाक का दावा किया, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया।



Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *