महत्वपूर्ण अदालती फैसले
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत देने के मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत प्रदान की गई थी।
फैसले को पलटते हुए शीर्ष अदालत ने एक गाइडलाइन तैयार की है। साथ ही देश भर में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें अपनी ओर से अभियोजन पक्ष और अभियुक्तों के बीच शादी करने मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव न दें क्योंकि यह उनकी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र से परे है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में मध्य प्रदेश की उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के मामले में आरोपी को जमानत देते हुए पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त रखी थी। जिसके बाद अदालत के इस फैसले को महिला वकीलों ने चुनौती दी थी।
महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सर्वोच्च न्यायालय की गाइड लाइन
-आरोपी को जमानत देने के पहले अदालत पीड़ित को पूरा संरक्षण सुनिश्चित करें. आवश्यक नहीं कि पीड़ित और आरोपी के बीच मेल मिलाप की शर्त रखी जाए।
-यदि आरोपी की तरफ से दबाव बनाने की शिकायत पीड़िता की ओर से मिले तो अदालत को साफ तौर पर आरोपी को आगाह कर देना चाहिए कि वो किसी भी सूरत में पीड़ित से कोई संपर्क नहीं करेगा।
-सभी मामलों में जमानत देने के साथ ही शिकायतकर्ता को सूचित किया जाए कि आरोपी को जमानत प्रदान की दी गई है। साथ ही जमानत की शर्तों की प्रति भी दो दिनों के अंदर मुहैया करा दी जाए। जमानत शर्तों में महिलाओं और समाज में उनके स्थान को लेकर रुदिवादी धारणाओं से हटकर निर्देश होने चाहिए।
– अदालत अपनी ओर से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव न दे। अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा पता होनी चाहिए। उस लक्ष्मण रेखा को पार न करें।
संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए। जिरह बहस, आदेश और फैसले में हर जगह पीड़ा का अहसास कोर्ट को भी रहना चाहिए। खास कर जज अपनी बात रखते समय ज्यादा सावधान, संवेदनशील रहें, जिससे पीड़िता का आत्मविश्वास बना रहे और कोर्ट की निष्पक्षता पर कोई असर न पड़े ।
मीडियाटिक डेस्क
संदर्भ स्रोत-एनडीटीवी इंडिया
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