केरल हाईकोर्ट: गृहिणी भी राष्ट्र निर्माता..कामकाजी महिला के समान मुआवजा की हकदार

blog-img

केरल हाईकोर्ट: गृहिणी भी राष्ट्र निर्माता..कामकाजी महिला के समान मुआवजा की हकदार

छाया: हिन्दू डॉट कॉम

महत्वपूर्ण अदालती फैसले

केरल उच्च न्यायालय ने केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) को हादसे में पीड़िता को इस आधार पर मुआवजा देने से इनकार करने के लिए फटकार लगाई कि वह एक गृहिणी है और कोई पैसा नहीं कमाती है। कोर्ट ने इसे अपमानजनक और समझ के परे बताया है। कोर्ट ने गृहिणी की भूमिका को राष्ट्र निर्माता बताते हुए बेहतर मुआवजा देने का आदेश दिया है। केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि गृहिणी की भूमिका किसी राष्ट्रनिर्माता से कम नहीं है। उनके काम को तुच्छ नहीं बता सकते। हाई कोर्ट ने दुर्घटना पीड़ित महिला को कम मुआवजा देने के लिए दी गई इस दलील को भी खारिज कर दिया कि महिला हाउसवाइफ है और उसकी कोई आय नहीं है। इस पर हाई कोर्ट ने केएसआरटीसी काे फटकार भी लगाई और उचित मुआवजा देने का आदेश दिया। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा, ‘मुझे कहना होगा कि केएसआरटीसी का यह तर्क कि गृहिणी की कोई आय नहीं है और इसलिए विकलांगता और अन्य नुकसान के लिए मुआवजे की पात्र नहीं है, अपमानजनक है और यह समझ से परे है। घर में एक मां और पत्नी की भूमिका की तुलना किसी भी अन्य से नहीं की जा सकती है और घर में रहकर परिवार चलाने वाली महिला सच्ची राष्ट्र निर्माता है। वह अपना समय परिवार के लिए निवेश करती है और यह सुनिश्चित करती है कि अगली पीढ़ी को उत्कृष्टता के उच्चतम स्तर के साथ पोषित किया जाए। उसके प्रयासों को कभी भी तुच्छता से नहीं लिया जा सकता है।’ इसके साथ ही हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि गृहिणी और कामकाजी महिला के लिए मुआवजा एक समान होना चाहिए।

• 40,214 रुपए मुआवजा दिया था
हाई काेर्ट मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देने वाली एक गृहिणी की अपील पर ये आदेश दिया। केएसआरटीसी के ड्राइवर के अचानक ब्रेक लगाने के चलते महिला बस से टकरा गई थी। उसे गंभीर चाेट लगी थी। इसके बदले मुआवजा में सिर्फ 40,214 रु. दिए गए थे। हाई कोर्ट ने 1,64,654 रु. मुआवजा का आदेश दिया।

इंसान को उसके पैसे के पैमाने से न मापें
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने यह भी कहा कि इंसानों के जीवन को कभी भी उनके पैसे के पैमाने पर नहीं आंका जाना चाहिए, बल्कि उनके योगदान और निस्वार्थता से परखा जा सकता है।

सन्दर्भ स्रोत- दैनिक भास्कर

संपादन- मीडियाटिक डेस्क

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



18 साल के पहले बालिका का नहीं कराएंगे विवाह,
अदालती फैसले

18 साल के पहले बालिका का नहीं कराएंगे विवाह, , राजस्थान हाईकोर्ट ने माता-पिता से लिया वचन

 अदालत ने माता-पिता से वचन लिया कि वे बालिका के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे, अन्यथा कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट : झूठे आरोपों से टूटता है वैवाहिक विश्वास
अदालती फैसले

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट : झूठे आरोपों से टूटता है वैवाहिक विश्वास

अदालत ने कहा — झूठे, मानहानिकारक और अप्रमाणित आरोप वैवाहिक विश्वास को नष्ट कर देते हैं। इस आधार पर पति को तलाक की अनुमति...

ग्वालियर हाईकोर्ट : आपसी सहमति से बने संबंध गैर-आपराधिक
अदालती फैसले

ग्वालियर हाईकोर्ट : आपसी सहमति से बने संबंध गैर-आपराधिक

अदालत ने कहा -यदि दो वयस्क लंबे समय तक अपनी इच्छा से संबंध में रहते हैं और बाद में उनका विवाह नहीं होता, तो इसे दुष्कर्म...

गुजरात हाईकोर्ट : पिता की सहमति के बिना
अदालती फैसले

गुजरात हाईकोर्ट : पिता की सहमति के बिना , भी बच्चों का पासपोर्ट नवीनीकरण होगा

यह निर्णय तब आया जब एक तलाकशुदा माँ ने अपने बच्चों के पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए याचिका दायर की थी, और अदालत ने पाया कि बच...

झारखंड हाईकोर्ट : पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी अमान्य
अदालती फैसले

झारखंड हाईकोर्ट : पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी अमान्य

हाईकोर्ट का फैसला, धर्म या निजी कानून का नहीं रहेगा असर

दिल्ली हाईकोर्ट : बाल देखभाल अवकाश की भावना
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : बाल देखभाल अवकाश की भावना , सर्वोपरि, मनमानी नहीं चलेगी

शिक्षिका की याचिका पर फैसला- कहा, यह अवकाश नाबालिग बच्चों के कल्याण व मां की जरूरतों को ध्यान में रखकर दिया जाता है