कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि तलाक मांगने के लिए क्रूरता के आरोपों को कुछ भौतिक साक्ष्यों से प्रमाणित किया जाना चाहिए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने एक व्यक्ति के तलाक के आदेश को खारिज कर दिया। शख्स ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर अदालत का रुख किया था। कोर्ट ने बार-बार यह माना कि क्रूरता के कई पहलू हैं और सामाजिक संदर्भ, विवाह में पक्षों की आर्थिक स्थिति और ऐसे अन्य कारकों के आधार पर व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं। न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद और न्यायमूर्ति सुप्रतिम भट्टाचार्य की खंडपीठ ने कहा, 'क्रूरता का आकलन करने के लिए जो भी मानदंड हो, आरोप लगाने वाले पक्ष की क्रूरता की कुछ घटना साबित होनी चाहिए। वर्तमान मामले में यह पूरी तरह से अनुपस्थित है।'
पति के वकील की दलील
पति के वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पत्नी ने अपने पति पर अन्य महिलाओं के साथ विवाहेतर संबंध रखने का आरोप लगाया। हालांकि पत्नी ने इन आरोप को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिए। वकील ने कहा कि इसलिए इसे क्रूरता नहीं माना जाना चाहिए।
पत्नी की ओर से क्या जिरह
पत्नी ने अपनी जिरह में यही आरोप लगाया और कहा कि उसने अपने पति के खिलाफ यातना की शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन मामले को आगे नहीं बढ़ाया। हाईकोर्ट ने पाया कि पति के हस्ताक्षर वाले एक दस्तावेज में उस महिला का नाम था जिसके साथ उसके विवाहेतर संबंध होने का आरोप था। इस जोड़े की शादी 2001 में हुई थी और उनका एक बेटा है।
निचली अदालत ने अपील की थी खारिज
2022 में निचली अदालत ने पति के दायर तलाक की अपील को खारिज कर दिया। अपने आरोपों में पति ने कहा था कि उसकी पत्नी ने उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया था और उसके भाई उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते थे। हालांकि, पत्नी ने दावा किया कि पति ही किराए के घर में रहने चला गया था जबकि वह वैवाहिक घर में रहती रही। उसने आगे आरोप लगाया कि उसके पति का विवाहेतर संबंध था और इसलिए वह उससे तलाक लेना चाहता था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र
जब पति ने खंडपीठ का रुख किया, तो उसने नोट किया कि विवाह विच्छेद के आधार के रूप में क्रूरता के मुद्दे पर पिछले फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मानसिक क्रूरता की कोई निश्चित व्यापक परिभाषा नहीं हो सकती है। एक मामले में जो क्रूरता हो सकती है, वह दूसरे मामले में समान नहीं हो सकती है। आगे कहा गया कि क्रूरता व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न होती है, जो परवरिश, संवेदनशीलता का स्तर, शिक्षा, पारिवारिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, वित्तीय स्थिति, सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाज और परंपरा, आदि पर निर्भर करती है। कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा... क्रूरता को दलील और सबूत दोनों के जरिए स्थापित किया जाना आवश्यक है, ताकि विवाह विच्छेद/तलाक का आधार बन सके। पति का यह दावा कि पत्नी ने उसे छोड़ दिया है, यह भी साबित नहीं हो सका, क्योंकि उसके पास यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि उसकी पत्नी ने उसका साथ छोड़ दिया है।' हताश प्रयास के रूप में, उसने विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने का तर्क उठाने की कोशिश की, जिसे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसे तलाक के आधार के रूप में क़ानून में शामिल नहीं किया गया है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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