प्रयागराज। मेरठ निवासी पिता की अपील खारिज करते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक उसकी मां है, भले ही बेटी पापा की लाडली क्यों न हो। यह टिप्पणी कर कोर्ट ने पिता की ओर से बेटी की अभिरक्षा की मांग वाली अपील खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति डी.रमेश की खंडपीठ ने मेरठ निवासी अमित धामा की अपील पर दिया।
बेटी पैदा होने के बाद दंपती में शुरू हुआ था विवाद
23 मई 2010 को अमित की शादी हुई थी। तीन वर्ष दंपती खुशी से साथ रहे। दो अप्रैल 2013 को बेटे और 29 सितंबर 2020 को बेटी पैदा हुई। इसके बाद दंपती के बीच बात बात पर कहा सुनी होने लगी और वैवाहिक विवाद शुरू हो गया।
पति ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा
दंपती के बाद प्रतिदिन के झगड़ों के बाद बात इतनी बढ़ी कि पति ने तलाक की अर्जी दाखिल कर दी। वहीं, पत्नी ने पांच वर्षीय बेटी की अभिरक्षा के लिए पारिवारिक न्यायालय में अर्जी दाखिल की, जो स्वीकार कर ली गई। इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दोनों वकीलों में कोर्ट में हुई बहस
वकील की दलील दी थी कि बेटी पिता की लाडली है। दोनों खुशी से रह रहे हैं। पिता उसकी अच्छे से देखभाल कर रहा है। यदि पिता को उससे अलग किया गया तो बेटी को गहरा सदमा लगेगा। वहीं, प्रतिवादी वकील ने इसका विरोध किया। कहा कि कानूनी रूप से पांच साल के बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक मां होती है। लिहाजा, बेटी मां को ही मिलनी चाहिए।
संदर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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