कविता नागर की कविता 'अतीत' 

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कविता नागर की कविता 'अतीत' 

• कविता नागर (देवास)

 

अतीत

वह सूखा कुंआ

जिसमें कभी-कभी वर्तमान

गिर कर डूब जाता है 

 

हिलोरे आती हैं 

इतिहास की

मगर दिखाई नहीं देती।

सिर्फ सुनाई देती हैं

 

इससे ही भर जाते है 

वर्तमान के कान

और वो बहरा हो जाता है।

 

ये भी अक्सर लिंगभेद 

करता पाया जाता है।

 

जैसे औरतो के सुनहरे भविष्य पर

अक्सर पोत दी जाती है 

अतीत की काली मिट्टी।

और उनका वर्तमान पलीद हो जाता है ।

 

पर क्यो अधिकतर पुरूषों का विगत

उनके आगत पर भारी नहीं पड़ता ।

 

साहसी औरतों को पस्त करने के जब नहीं मिलतें,कोई बहाने तो उठा ही लिया जाता है ये भावुक हथियार।

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